04 February 2010

घर
काटने को दौड़ता है
जब हम रहते हैं
सिर्फ घर में






*
घर
बहुत याद आता है
जब हम थक जाते हैं
दुनियावी भागदौड़ में
*
घर
छोड़ने का जी चाहता है
जब छिड़ी रहती है जंग
आपस में
*
घर
भूल जाता है कभी
यार-दोस्तों की गप्पों में

बीवी फोन कर बुलाती है
पति को
आ जाओ अब
घर में

बीवी रोज जिद करती है
पति से
दूर चलते हैं कहीं
घर से
*
घर
दीवारें काटने को दौड़ती हैं
जब मुंह छिपाकर
दुबकते हैं घर में
*
घर
जब हम जीत कर आते हैं
रोज़ाना के जंग
मीठा सा लगता है घर
*
घर
इंतज़ार करता है कभी हमारा
कभी हम इंतज़ार करते हैं
घर का

6 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत सुन्दर , बढिया लगा पढकर ।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सुंदर कविता...

M VERMA said...

घर
की महत्ता उनसे पूछिये
जो हो गये हैं
बेघर.
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बहुत सुन्दर लगा घर का यह घरौदा

महुवा said...

कुछ भी हो हालात...पर घर हर हाल में याद आता है...

डॉ .अनुराग said...

सच कहा.....

Razi Shahab said...

घर
इंतज़ार करता है कभी हमारा
कभी हम इंतज़ार करते हैं
घर का

bahut sundar