घर
काटने को दौड़ता है
जब हम रहते हैं
सिर्फ घर में
*
घर
बहुत याद आता है
जब हम थक जाते हैं
दुनियावी भागदौड़ में
*
घर
छोड़ने का जी चाहता है
जब छिड़ी रहती है जंग
आपस में
*
घर
भूल जाता है कभी
यार-दोस्तों की गप्पों में
बीवी फोन कर बुलाती है
पति को
आ जाओ अब
घर में
बीवी रोज जिद करती है
पति से
दूर चलते हैं कहीं
घर से
*
घर
दीवारें काटने को दौड़ती हैं
जब मुंह छिपाकर
दुबकते हैं घर में
*
घर
जब हम जीत कर आते हैं
रोज़ाना के जंग
मीठा सा लगता है घर
*
घर
इंतज़ार करता है कभी हमारा
कभी हम इंतज़ार करते हैं
घर का
6 comments:
बहुत सुन्दर , बढिया लगा पढकर ।
सुंदर कविता...
घर
की महत्ता उनसे पूछिये
जो हो गये हैं
बेघर.
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बहुत सुन्दर लगा घर का यह घरौदा
कुछ भी हो हालात...पर घर हर हाल में याद आता है...
सच कहा.....
घर
इंतज़ार करता है कभी हमारा
कभी हम इंतज़ार करते हैं
घर का
bahut sundar
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