27 February 2010

कहां गये तारे वो

स्स्स्सालालाला
ये तो बड़ा गजब होइगा
मैं कहती हूं
आसमान में अब नहीं दिखते
उतने तारे, उतने चमकीले
तोड़कर टांग दिये गये हों जैसे
गगनचुंबी इमारतों की खिड़कियों में
रात ढले
और सड़क पर चुपचाप खड़े खंभों पर भी
मुंह चिढ़ाते निहत्थे आसमान को
लेकिन बड़ा बेशर्म है फिर भी
चांद तो
हमें मुंह चिढ़ाता दिख ही जाता है
और बड़ा सा कुछ
देखो तो बदतमीज को
मैं गैलरी में पेट पिचकाने के प्रयास में
टहल रही थी
ताकि सोसाइटी से निष्कासित न कर दी जाऊं
फिगर फैक्टर का बड़ा प्रेशर है
उधर, मुंह बिचकाता चांद भी
जैसे टहल रहा हो साथ मेरे
12वीं मंज़िल पर

5 comments:

रानीविशाल said...

Sundar
holi ki shubhkaamnaae!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

डॉ .अनुराग said...

...वल्लाह......!!

अनामिका की सदायें ...... said...

मैं गैलरी में पेट पिचकाने के प्रयास में
टहल रही थी
ताकि सोसाइटी से निष्कासित न कर दी जाऊं
फिगर फैक्टर का बड़ा प्रेशर है
उधर, मुंह बिचकाता चांद भी
जैसे टहल रहा हो साथ मेरे

waah acchhi lines hai..
holi ki shubhkaamnaye.

डिम्पल मल्होत्रा said...

उधर, मुंह बिचकाता चांद भी
जैसे टहल रहा हो साथ मेरे
12वीं मंज़िल पर ..ultimate.

vijaymaudgill said...

हर शय में कविता है। सच में। बहुत ख़ूब।