21 January 2009

द काइट रनर


kite runner. कल ये फिल्म देखी। अफगानिस्तान की पृष्ठभूमि में गढ़ी दो दोस्तों की कहानी। दो छोटे बच्चे जिनमें से एक मालिक होता है, एक नौकर। नौकर को वो हज़ारा कहते हैं, जो शायद वहां की छोटी जाति होगी। वो हिम्मतवाला, बहादुर होता है, मालिक कायर। नौकर नाज़ुक वक़्त पर मोर्चा संभाल लेता है, मालिक बच्चा भाग खड़ा होता है।

पतंगबाज़ी की प्रतियोगिता में ग़रीब बच्चे की वजह से मालिक साहब प्रतियोगिता जीत लेते हैं, उनकी पतंग नहीं कटती, आखिर तक हवा मे गोता लगाती रहती है, हज़ारा अपने मालिक को कटी हुई पतंग देने के लिए भागता है, वही kite runner. होता है, उसे हमेशा पता रहता है, पतंग कहां मिलेगी। वो पतंग तो पा लेता है पर यहीं दोस्ती खो देता है। अपने नन्हे मालिक दोस्त की कायरता की वजह से।

रूस का हमला होता है। लोग भागते है। मालिक बच्चा अपने पिता के साथ अमेरिका बस जाता है, बड़ा होकर लेखक बन जाता है, बचपन में लिखी गई जिसकी कहानियां सिर्फ उसका ग़रीब दोस्त ही सुनता था, उसे वो अच्छी भी लगती है।
फिल्म की कहानी कई ऐसी घटनाओं से भरी हुई है जो रोंगटे खड़ी कर देनेवाली हैं।

ग़रीब दोस्त वहीं बंदूकों के साये में जी रहा होता है और एक दिन मार दिया जाता है। उसकी मौत पर पता चलता है कि वो तो दरअसल लेखक के पिता की अवैध संतान होता है। उसका एक बेटा है। जिसे काबुल में कट्टरपंथियों ने खरीद लिया।
पूरी फिल्म में एक कमज़ोर इंसान की तरह दिखाया गया लेखक के अंदर ये जानने के बाद हिम्मत जागती है। वो काबुल जाकर उस बच्चे को छुड़ाता है, वहां से अमेरिका ले आता है।

फिल्म खत्म होती है पतंगबाज़ी के साथ। इस बार लेखक पतंग उड़ाता है और बच्चे के हाथ में डोर थमाता है। कांपते हाथों से बच्चे ने डोर पकड़ी और पतंग कट गई, दूसरे की। लेखक कटी पतंग के पीछे भागता है। इस बार वो सचमुच जीत गया था।
वैसे तो मैंने फिल्म की कहानी लिख दी।

पर दरअसल मैं लिखना चाहती थी कि कई बार आपके सामने भी ऐसे मौके आते हैं जब भीड़ के सामने थोड़ी हिम्मत दिखाने की जरूरत होती है। आपके सामने कोई किसी को पीट रहा होता है, आप या तो मज़ा लेते हैं, डरते हैं, या तिलमिला कर रह जाते हैं। मेरे साथ तो कोई बार ऐसा हुआ, मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती, फिर खुद को कोसती हूं। एक ज़रा सी हिम्मत चाहिए होती है, भीड़ का डर सताता है, इस डर से उबरने के लिए। कितनी बार देखा है रास्ते में गाड़ीवाला रिक्शेवाले को पीट रहा होता है, जबकि गाड़ी से टकराकर किसका नुकसान हुआ होगा, रिक्शे का या गाड़ी का।
kite runner.का हज़ारा हिम्मत देता है।

13 January 2009

एनी थिंग कैन गो रॉन्ग, विल गो रॉन्ग

(एक मज़ेदार आर्टिकल हिंदुस्तान में पढ़ने को मिला। जो वहां न पढ़ सकें, यहां पढ़ सकते हैं। एड़वर्थ ए मर्फी जूनियर की थ्योरी पर ये आर्टिकल है। थ्योरी है any thing can go wrong, will go wrong)


जूते में अगर कोई बाहरी पदार्थ आ घुसा हो तो निश्चित जानिए वह उसी कोण पर अटक जाएगा जहां से वो आपको सबसे अधिक तकलीफ दे। मक्खन लगा टोस्ट ज़मीन पर हमेशा उसी ओर गिरेगा, जिधर मक्खन लगा है। ये चंद वो सिद्धांत हैं, जिहें स्वीकार कर आप मक्खन बचाने के लिए ज्यादा एहतियात बरत सकते हैं और अपनी गड़बड़ियों पर हंस भी सकते हैं। इन सिद्धांतों के माता और पिता दोनों एडवर्ड ए मर्फी जूनियर हैं।

इन सिद्धांतों का जन्म ही एक गड़बड़ी से हुआ। 1949 में इंजीनियर मर्फी पर अमेरिकी एयरफोर्स ने तेज़ स्पीड के बीच मानव शरीर की सहनशक्ति की सीमा तय करने के कुछ वैज्ञानिक प्रयोग किए थे। प्रयोग के दौरान 16 सेंसर मर्फी के शरीर पर लगाए जाने थे। मर्फी के सहायक ने वो सारे सेंसर उल्टे लगा दिए। नतीजा आया शून्य. इस गड़बड़ी पर मर्फी के मुंह से जो बोल फूटे वो मर्फी सिद्धांत की अमर बुनियाद बने- अगर कोई चीज उलट-पुलट हो सकती है, तो वो यकीनन उलट पुलट होकर ही रहेगी। any thing can go wrong, will go wrong.

आज ये हाज़िर जवाब लोगों के प्रिय मुहावरों में से एक है। ये सिद्धांत अब साठ बरस का हो गया है। इसी सिद्धांत को दिमाग़ में रखते हुए आज आम आदमी के इस्तेमाल के लिए बेहतर तकनीक से बनाई गई चीज में गड़बड़ी पैदा करनेवाले कनेक्शनों को ज्यादा मुश्किल बना दिया जाता है।

उदाहरण के लिए कभी कम्प्यूटरों में 3.5 इंच की फ्लॉपी का इस्तेमाल होता था। आपने गौर नहीं किया होगा लेकिन फ्लॉपी तबतक अंदर नहीं जाती जब तक आप उसे सही तरीके से डिस्क में न डालें। इस 3.5 इंच वाली फ्लॉपी से पहले 5.25 इंच की फ्लॉपी चलती थी, लेकिन क्वालिटी के मानकों पर ये उतनी खरी नहीं उतरती थी। क्योंकि ये फ्लॉपी उलट-पुलट करके भी डिस्क में घुस जाती थी और इससे कम्प्यूटर को नुकसान पहुंचने का खतरा था।

डिफेंसिव डिजायनर(चीजों को गलती की गुंजाइश से बचानेवाला) जानता है कि अगर फ्लॉपी को उल्टा करके डालना संभव है तो कोई न कोई महानुभव उसे उल्टा करके जरूर डालेगा।

इसीलिए तो कहा जाता है कि -आप अगर कुछ ऐसा बनाएंगे जो बेवकूफी से सुरक्षित होगा तो ऐसा व्यक्ति पैदा हो जाएगा जो और बड़ा बेवकूफ होग।-

लोग दरअसल बेवकूफों की बेवकूफी की हद का आंकलन नहीं कर पाते।