26 August 2017

सुल्ताना ने जो सपना देखा...

इस कहानी ने अपने वक़्त में सबको हैरान कर दिया था। कि दुनिया जैसी हम देखते हैं इससे ठीक उलट भी हो सकती है। औरतों की दुनिया। बीसवीं सदी के शुरुआती दशक औरतों के माफिक तो हरगिज नहीं थे। आज़ादी की जंग लड़ रहे हिंदुस्तान में तब औरतों के अधिकार को अलग से देखा भी नहीं जाता था। उस समय में रुकैया  सखावत हुसैन ने एक कहानी लिखी जिसका नाम था -सुल्ताना का सपना। सुल्ताना अपने सपने में एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करती है जहां हर चीज बदली हुई थी। जहां बारिश नहीं होती थी लेकिन धरती पर बहुत हरियाली थी।   

अगर पाठक चाहें तो वे भी हमारी किरदार सुल्ताना के साथ उसके सपनों की दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं। जो एक शाम अपनी आराम कुर्सी पर पसरी हुई थी, आंखें उनींदी हुईं, सपना शुरू हुआ।

सुल्ताना अपने सपने में एक सुंदर बागीचे में थी। रात के नीले आसमान पर चांद चमक रहा था। इस समय कोई लड़की अकेली, बाहर, वो भी बागीचे में। पाठक, आप लोग क्या कहते हैं, यह कुछ अजीब है न। सुल्ताना को भी अजीब लगा। लेकिन वहां मौजूद सिस्टर सारा ने बताया कि डरने की कोई बात नहीं सभी पुरुष गहरी नींद में सो रहे हैं। सुल्ताना कुछ अचकचायी सी है। सुबह हो गई। अब वो भीड़ भाड़ भरी सड़क पर थी। लेकिन इस भीड़ में कोई मर्द नहीं था। सब औरतें थीं। उन्होंने सुल्ताना पर कुछ फिकरे कसे। सुल्ताना समझ नहीं सकी और उसने अपनी सहेली सिस्टर सारा से पूछा। सहेली ने बताया कि सुल्ताना उन्हें मर्दों की तरह शर्मीली और डरपोक लग रही है।

बीसवीं सदी की शुरुआत में सड़क पर बेधड़क चल रही सुल्ताना के लिए सब कुछ बेहद आश्चर्यचकित करने वाला था। उसे तो पर्दे में रहने की आदत थी। सड़कों पर पुरुष दिखते थे। महिलाएं ज्यादातर घर में रहा करती थीं। लेकिन सपने में सब कुछ उलट था। पुरुष घर में रहते थे और घर के कामकाज देखते थे। वे बाहर कम ही दिखाई देते थे। असल दुनिया से एक दम उलट। सुल्ताना ने अपनी सहेली से पूछा कि सारे मर्द कहां गए। सहेली ने बताया कि उनके इस देश में मर्द घर में बंद रहते हैं जैसे औरतें जनाना घर में बंद की जाती थीं। सुल्ताना का हंसने का जी चाह रहा था। वो अपनी सहेली से कहती है कि औरतें तो कुदरती तौर पर कमजोर होती हैं इसलिए उनका सड़कों पर आना सुरक्षित नहीं। सहेली बताती है कि सड़क तभी सुरक्षित नहीं जब पुरुष वहां होते हैं। इसलिए सपनों के इस देश में पुरुषों का सड़क पर निकलना मना था। अपनी बात समझाने के लिए सुल्ताना को वो शेर का उदाहरण देती है। जो जंगली होता है इसलिए उसे सड़क पर नहीं आने दिया जाता।

सपना अभी और हैरतअंगेज बातों से भरा पड़ा था। सुल्ताना को पता चलता है कि यहां सात आठ घंटे दफ्तर में काम नहीं करना होता। यहां महिलाएं सारे काम दो तीन घंटे में ही निपटा देती थीं क्योंकि वे अपना समय सिगरेट पीने में बर्बाद नहीं करती थीं। फिर सहेली सुल्ताना को रसोई दिखाने ले गई। रसोई सब्जियों के एक खूबसूरत बागीचे में बनाई गई थी। जहां सूरज की गर्मी को इकट्ठा करके खाना बनाया जाता था। हमारी प्यारी सी किरदार सुल्ताना के आश्चर्य खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे। तो उसकी सखी ने बताया कि कैसे लड़कियां विभिन्न वैज्ञानिक शोध के ज़रिए कुदरत को बिना नुकसान पहुंचाये अपने  सभी काम आसानी से निपटा लेती हैं। उन्होंने एक निराला गुब्बारा ईजाद किया था। जिसे वे बादलों के उपर तैराते थे। और अपनी जरूरत का पानी जुटा लेते थे। पानी लगातार लेने से बादल बनने बंद हो गए जिससे बारिश और तूफान भी नहीं आते थे। पाठकों की पीठ पर भी यहां सुरसुरी सी हो उठती है। विज्ञान का ये चमत्कार तो अब तक नहीं देखा उन्होंने।


हमारी किरदार और उसके साथ पाठकों की जिज्ञासाएं शांत ही नहीं हो रही थीं। सुल्ताना ने जानना चाहा कि आखिर सारे मर्दों ने घर में रहना स्वीकार कैसे कर लिया। वे तो ताकतवर हैं। फिर सपने की सखी ने बताया। कि एक बार बाहरी मुल्क के आक्रमण में उनके देश के ज्यादातर पुरुष युद्ध कर रहे थे। ताकतवर फौज के आगे वे हार रहे थे। तभी इस देश की रानी ने सभी महिलाओं के साथ मुलाकात की और युद्ध जीतने की एक नायाब तरकीब सोची। रानी ने सभी पुरुषों को सम्मान और स्वतंत्रता के लिए जनानखाने में आने को कहा। वे इतने थके हुए थे और घायल थे कि बिना विरोध किए रानी के आदेश को मान लिया। इसके बाद वहां की विश्वविद्यालय की प्रिंसिपल ने अपनी दो हजार छात्राओं के साथ रणभूमि की ओर कूच किया। उन्होंने सूरज की जमा की हुई रोशनी को दुश्मन सेना पर छोड़ दिया। झुलसा देने वाली गर्मी का सामना दुश्मन सेना नहीं कर सकी। फिर मर्दों ने वापस बाहर निकलने की मांग की। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फिर मर्दों को पर्दे में रहने की आदत पड़ गई। जनाना शब्द की जगह मरदाना शब्द ने ले ली।

महिलाओं की हुकूमत वाले इस देश में अपराध न के बराबर होते थे। अगर किसी ने जुर्म किया तो उसे देश छोड़ने का दंड दिया जाता था। महिलाएं मशीनों के जरिये खेती करती थीं। फल यहां का मुख्य भोजन था। गर्मी के मौसम में वे अपने बनाए हुए कृत्रिम गुब्बारों से धरती पर बौछार करती थीं। जाड़े के मौसम में सूरज की गर्मी से कमरे गर्म रखती थीं। सुल्ताना सवालों के बौछार कर रही थी। उसने फिर पूछा तुम्हारे देश में धर्म कौन सा है। प्रेम और सच्चाई, सहेली ने बताया।

सुल्ताना अब इस देश की महारानी को देखना चाहती थी। सहेली ने हाइड्रोजन गेंदों से संचालित एयर कार में बिठाया और उसे लेकर हवा में उड़ चली। वे महारानी से मिलीं। महारानी ने भी सुल्ताना से ढेरों बातें की। कि यहां ज़मीन के झगड़े नहीं होते, कोई तख्ता पलट नहीं होता, वे प्रकृति के उपहारों को संजोती हैं। सुल्ताना ने इस अचंभे भरे देश की प्रयोगशालाएं, विश्वविद्यालय जैसी चीजें देखी। वे वापसी के लिए अपनी एयर कार में बैठी और सपना टूट गया। सुल्ताना अपनी आरामकुर्सी पर थी। जो उसने सपने में देखा वो क्या था।
(दैनिक ट्रिब्यून के लहरें कॉलम में प्रकाशित)

No comments: