14 December 2014

जींस पहनो लड़कियों





दिल्ली के निर्भयाकांड को दो साल हो गए। इस धरातल पर  खड़े होकर हम अपने चारों ओर
निगाहें दौड़ाएं तो क्या पाएंगे। मासूम लड़कियों की चीखों से कांपती, उनके ख़ून में सनी-सहमी धरती। निर्भया आंदोलन ने पूरे देश में सिर्फ मोमबत्तियों की रोशनी ही नहीं फैलायी बल्कि इस ओर सख्त कदम उठाए जाने की आजेमाइशें भी हुईं। नए कानून बने। लेकिन आज हम क्या पाते हैं। क्या अपराधियों के मन में बलात्कार और सज़ा को लेकर कोई ख़ौफ़ जागा। बल्कि रेप की घटनाएं तो सामान्य घटनाओं की तरह बरती जाने लगीं। कितनी लड़कियां सड़कों पर खींची जाने लगीं। स्कूलों में छोटी बच्चियां सुरक्षित नहीं रहीं। रेप पीड़ितों के साथ कानूनी प्रक्रिया में और बर्बर व्यवहार बरता जाने लगा। दोषी को बचाने के लिए पूरा अमला लग जाता ताकि उनकी फाइल में रेप का एक और केस दर्ज न हो। उनके आंकड़े में एक और घटना का इजाफा न हो। आतंकवाद की तरह बलात्कार छा गया है। बदलता हुआ समाज बलात्कार से पीड़ित है। इस नए समाज में घर के बाहर खेल रही बेटी की आवाज़ दो घड़ी को थमती है तो मां अनहोनी से आशंकित  उसे देखने निकलती है।  जबकि पहले बेटियां बाग-बगीचों-खलिहानों में खेलती फिरती थीं। घटनाएं तब भी रहीं लेकिन आज के जैसे तो नहीं।

निर्भया को याद करते हुए दिल्ली कैब रेप कांड और रोहतक की दो बेटियों की  बात की जाए।  दोनों घटनाएं तकरीबन एक समय की हैं। 6 दिसंबर को दिल्ली कीे हाईप्रोफाइल कैब कंपनी  के ड्राइवर ने  लड़की से  बलात्कार किया। लड़की ने ही हिम्मत दिखाकर उस टैक्सी की फोटो खींची जिससे उस ड्राइवर तक पहुंचा जा सका।
उधर रोहतक की दो लड़कियों ने बस में गुंडों की पिटाई की जिससे हरियाणा राज्य हैरान था। कैब  रेप कांड को लेकर एक बार फिर लड़कियों की सुरक्षा का मुद्दा उठा। फिर जबरदस्त नारेबाजी, विरोध प्रदर्शन हुए। जबकि हरियाणा में पूरा अमला दो बहादुर बहनों के विरोध में खड़ा हो गया।  बहनों के खिलाफ नए-नए सबूत पैदा किये जाने लगे। खबरों से पता चला कि पूरी जाट बिरादरी लड़कियों के खिलाफ लामबंद  हो गई है।  उनके खिलाफ पोस्टर लगाए जाने लगे। यहां तक कि  इसे हिंदुत्व से जुड़ा मुद्दा बना लिया गया।

जब भी कोई लड़की बलात्कार की शिकार होती है तो सुरक्षा का मुद्दा उठाया जाता है। पड़ताल की जाती है। लड़कियों को आत्म रक्षा के गुर सिखाए जाने की बड़ी-बड़ी बातें की जाेती हैं।  स्कूलों में जूडो-कराटे क्लास करायी जाती है। रोहतक की लड़कियों ने भी आत्मरक्षा की। अपनी बेल्ट से बस में छेड़खानी कर रहे लड़कों की पिटाई की तो  उन्हें  ही गलत ठहराया जाने लगा।  

हम लड़कियां जानती हैं कि हर रोज कितनी ही घटिया निगाहों का सामना करना पड़ता है। कितनी फब्तियां गाहे-बगाहे कहीं भी टपक जाती हैं। कितनी गंदी निगाहें बेहिचक किसी लड़की को अपमानित करने के इरादे से डोलती हैं। बस-ट्रेन में जानबूझकर हाथ-कंधे चिपकाए खड़े कितने शरीफ मुसाफिर आए गए।  हमारी मौजूदगी में जानबूझ कर दी जानेवाली भद्दी गालियों का कोई हिसाब नहीं।  कोई लड़की कितनी बार विरोध जताती है। कितनी बार चीखती हैेेे- ऐ क्यों घूर रहा हैे, क्यों गालियां बक रहा है। जबकि सड़क पर हर रोज ही ऐसी कितनी घटनाओं को वो छिटक देती है। वही लड़की अगर एक बार पलटकर वार कर देती है, गुंडों को सबक सिखा देती है, उनकी धुनाई कर देती है, तो फट पहले लड़कियों पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं। वहां गई क्यों। ऐसे कपड़े पहने क्यों। चुप क्यों नहीं रह गई।

रोहतक की घटना का एक और सबक। लड़कियों के जींस पहनने पर अक्सर ही सवाल उटाए जाते हैं।  दोनों बहनो पर भी ये सवाल उठाया गया और उनका जवाब था कि अगर जींस न पहनी होती तो कपड़े ही फट जाते। जींस थी सो बच गई। इसलिए जींस पहनो लड़कियों।  सोचिए उन दोनों बहनों ने बस में साड़ी पहनी होती तो उनका क्या हाल होता। क्या वो मुक़ाबला कर पातीं। क्या उनकी पोशाक ऐसे किसी हमले के समय  उनकी सुरक्षा कर पाती या और शर्मसार कर देती।