26 February 2010

ग़ालिब छुटी शराब अभी पढ़कर छोड़ी है। रवींद्र कालिया साहब ने संस्मरण लिखा है। किताब के आखिर में उनकी पत्नी ममता कालिया के एक पत्र का ज़िक्र है, जो ममता कालिया जी को लिखा गया था, उपेंद्रनाथ अश्क साहब ने लिखा, जब ममता जी ने शादी की सालगिरह भूल जाने पर तूफान बरपाया था। पत्र मज़ेदार है, डर भी लगा, खुद के गिरेबां में भी लगे हाथ झांक लिया। उन्होंने लिखा था:


प्रिय ममता,

....
...पत्नियों की ये आम आदत होती है कि वे कभी भला नहीं सोचतीं। मैं कभी घर से बाहर नहीं जाता, पर यदि कभी चला जाऊं और मुझे कहीं दे र हो जाए तो मेरी पत्नी सदा यही सोचेगी, कि मैं किसी ट्रक या मोटर के नीचे आ गया हूं। वो कभी कोई अच्छी बात नहीं सोचेगी, इस मामले में तुम भिन्न नहीं हो, हालांकि तुम बहुत पढ़ी-लिखी हो और कहानीकार हो और तुम्हें केवल अपनी तकलीफ की बात सोचने के बदले अपने पति की तकलीफ की बात भी सोचनी चाहिए। जो आदमी दिन-रात खट रहा हो, उसकी पत्नी यदि कोई ऐसी वाहियात बात लिख दे तो उसे कितनी तकलीफ पहुंचेगी, ये भी सोचना चाहिए।


मै स्वयं जालंधर का रहनेवाला हूं और वहां के लोग प्राय व्यर्थ का औपचारिक पत्र-व्यहवार नहीं करते। पत्र न आये तो समझो सब ठीक है। औपचारिक पत्र आने लगें तो संदेह करना चाहिए कि कहीं कुछ गड़बड़ है।

दूसरी बात ये है कि शादी के दिन की याद पत्नियां रखती हैं, पति नहीं रखा करते। उन्हें उस दिन की याद दिलाते रहना चाहिए, पर बदले में वे भी याद दिलायें, ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए। यदि वे भी याद दिलाने लगें तो समझना चाहिए कि कहीं घपला है। नॉर्मल स्थिति नहीं है।

ज़रा-ज़रा सी बात पर अपने अहं को स्टेक पर नहीं लगाना चाहिए। हम दो-तीन दिन में तुम्हें फोन करने की सोच रहे थे। नंबर होता तो अब तक तुम्हें यहां की सारी गतिविधि का पता मिल चुका होता।
....
मेरी किसी बात का बुरा न मानना। अपनी बच्ची समझकर मैंने ये चंद पंक्तियां लिख दी हैं.

सस्नेह
उपेंद्रनाथ अश्क


(पत्र के कुछ अंश काट दिये, जो मैं पढ़वाना चाहती थी, उसका उन अंश से कोई ताल्लुक नहीं था, पत्र का जवाब महिलाएं अपनी स्थितिनुसार दे सकती हैं)

7 comments:

राज भाटिय़ा said...

अरे हम पत्र का जबाब देने नही आये जी... हम तो....
आपको ओर आप के पुरे परिवार को होली की बहुत बहुत शुभकामनाऎँ देने आये है जी

Udan Tashtari said...

बस, पत्र पढ़ लिया.

आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

-समीर लाल ’समीर’

डॉ .अनुराग said...

मेरी पसंदीदा किताब है ......अलबत्ता इसके बहुत सारे आलोचक है ...उनके अपने तर्क है .पर मै इसे एक विधा मानता हूँ....नेट पर इसके दो तीन पार्ट उपलब्ध है....

ताऊ रामपुरिया said...

आपको होली पर्व की घणी रामराम.

रामराम

Ek ziddi dhun said...

ye use apni bachhi hi mante rahte hain. aur Rvindr kalia lampat hai

Smart Indian said...

उपेंद्रनाथ अश्क साहब का लिखा सदा meaningful होता है, किसी भी context में हो. क्या कभी पूरा पत्र पढने को उपलब्ध है?

Smart Indian said...

उपेंद्रनाथ अश्क साहब का लिखा सदा meaningful होता है, किसी भी context में हो. क्या कभी पूरा पत्र पढने को उपलब्ध है?