यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर,
बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है
तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
11 February 2010
कैमरे का एंगल बदल इस चित्र को और खूबसूरत बनाया जा सकता था, पर बात तो यही कहनी थी, हाथ तो यूं ही थामना था, प्यार तो यही रहना था।
5 comments:
how sweet...!!
बिल्कुल सही कहा..एंगल बदलने से प्रीत नहीं बदलती.
एक काला टीका .....
बहुत सुंदर, साथ मै बहुत बहुत बधाई, आप की पीछली पोस्ट भी पढूंगा
एंगल बदलने से प्रीत नहीं बदलती, तो भी एक चित्र और पोस्ट कीजिये जिसमें नन्हा हाथ बड़ी हथेली के ऊपर हो [just a request]
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