02 April 2007

गुलमोहर, पलाश, अमलताश,
हरश्रृंगार, अशोक के फूल
ज़िंदगी...
किसी शायर की महकती
ग़ज़लों की तरह
कितनी मशगूल
बबूल, कैक्टस, नागफनी,
सूखे वृक्ष, उड़ती धूल
ज़िंदगी...
किसी मज़दूर की पसलियों की तरह
कितनी मज़बूर

3 comments:

Mohinder56 said...

सुन्दर रचना..पढ कर दिल में फूल खिल उठे..
लिखते रहिये.. हम पढने आते रहेंगे

Nitin Bagla said...

बढिया रचना !
मेरा नजरिया...

थोडे कांटे,थोडी खुशबू,कई रंग,सुन्दर फूल
जिन्दगी....
जैसे गुलाब का फूल
:)

Udan Tashtari said...

अच्छा प्रयास, जारी रखें.