यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर, बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
31 March 2007
गांधी जी और सचिन तेंदुलकर का पर्सनल रिकॉर्ड बहुत अच्छा है लेकिन देश के लिए उन्होंने कुछ किया....ये उक्ति देश के कुछ महान विचारकों की है, जो वर्ल्डकप से इंडिया के बाहर होने पर निराश हुए, दीपा मेहत की बहुत धीमी रफ्तार वाली फिल्म वाटर देखकर ख़ुश हुए, सचिन तेंदुलकर और गांधी जी के उपर उन्हें उस दिन बहुत गुस्सा आ रहा था, नहीं वो गुस्सा नहीं था, अपने महान विचारों को अभिव्यकत करने के लिए मुद्दा था। हम भी तो कुछ कहें जिससे महान विचारकों में हमारी गिनती हो। दीपा मेहता की वाटर देखने के बाद वो बोले गांधी जी ने विधवाओं के लिए कुछ नहीं किया, गांधी जी ठेठ राजनीतिज्ञ थे, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को बचाने के लिए वो आगे क्यों नहीं आए, नीची मानी जानेवाली जातियों के लिए हरिजन नाम देने के सिवाय उन्होंने कुछ नहीं किया। तेंदुलकर के साथ भी कुछ यही नाराज़गी रही। वो बस अपने रिकॉर्ड बनाता रहा, जब भी देश को उसके बल्ले से रनों की ज़रूरत पड़ी, बल्ला ख़ामोश था। चलो तेंदुलकर ने कुछ नहीं किया, गांधी जी ने कुछ नहीं किया....महान विचारकों की श्रेणी में शामिल होनी की कतार में मेरा विचार है....अपना ग़म लेकर कहीं और न जाया जाए, घर की बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए, या फिर नारद पर ब्लॉगियाया जाए।
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1 comment:
नाशुक्रे हैं वे लोग जो कहते हैं कि गाँधी और तेंदुलकर ने कुछ नहीं किया..दरअसल ये वे लोग हैं जिन्होंने खुद जिन्दगी में कुछ नहीं किया.. और हमारे यहाँ हर हीरो को भुलाने और गरियाने की परम्परा रही है..चाहे वह मरा हुआ हो या जिन्दा.. हम लोग सिर्फ़ दूसरों की गलतियाँ गिनाते रहते हैं.. खुद कुछ सकारात्मक नहीं करते..
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