11 October 2013

कैसे जियें- किसी ने ख़त में मुझसे पूछा


विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविताएं ब्लॉग्स पर और फिर जलसा में पढ़ी। वो मुझे बहुत  अच्छी लगती
हैं। उनसे मुलाकात उनकी कविताओं में ही हुई है। उनके बारे में अंतर्जाल पर और सामाग्री ढूढ़ूंगी। फिलहाल उनकी एक बहुत ज़रूरी कविता यहां पर। 



सदी के मोड़ पर

दूसरी सदियों से बेहतर होना था हमारी बीसवीं सदी को,
यह साबित करने का वक़्त भी अब इसके पास नहीं है।
कुछ ही साल की यह मेहमान है,
चाल लड़खड़ाहट भरी
सांस फूलती हुई।

जिसको बिलकुल नहीं होना था इस सदी में
उसकी बहुत ज्यादती रही
और जो होना था
रहा नदारद।

बहार आने को थी और
आने वाली थीं ख़ुशियां बाक़ी चीज़ों के साथ।

डर को छूमंतर हो जाना था परबतों और वादियों से।
सच को झूठ से आगे निकल जाना था।

चंद बदनसीबियां
हरगिज़ न दोहरायी जानी थीं--
जैसे भूख और जंग।

चंद चीज़ों को इज़्ज़त मिलनी थी--
बेसहारों को बेचारगी को
आस्था और भरोसे वग़ैरा को।

जो इस दुनिया का लुत्फ़ लेना चाहता है
असंभव को बुलावा दे रहा है।

हिमाकत में लुत्फ़ नहीं
न अक़्लमंदी में ख़ुशी।

आशा वह अल्हड़ छोकरी अब न रही अल्हड़
न छोकरी न आशा
इत्यादि। आह।

ईश्वर को अंतत: मनुष्य पर भरोसा होना था
एक अच्छे और ताक़तवर मनुष्य पर,
पर दो मनुष्य पाए गए अलग-अलग खड़े
एक अच्छा और एक ताक़तवर।

कैसे िजियें- किसी ने ख़त में मुझसे पूछा
जिससे मैं पूछने पूछने को थी बिलकुल
यही सवाल।

तो हस्बे-मामूल
यही ज़ाहिर हुआ कि दुनिया में
भोले-भाले सवालों से ज़्यादा ज़रूरी
नहीं कोई भी सवाल।

(चित्र गूगल से साभार)

10 comments:

कविता रावत said...

हिमाकत में लुत्फ़ नहीं
न अक़्लमंदी में ख़ुशी।
..सच कहा आपने अच्छे से जिंदगी चले इसी में आज के समय ख़ुशी है ..
बहुत बढ़िया

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज शनिवार (12-10-2013) को "उठो नव निर्माण करो" (चर्चा मंचःअंक-1396)
पर भी होगा!
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

vandana gupta said...

दुनिया में
भोले-भाले सवालों से ज़्यादा ज़रूरी
नहीं कोई भी सवाल।्………………………बहुत खूब

अरुन अनन्त said...

नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-10-2013) के चर्चामंच - 1397 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Asha Joglekar said...

इन बोले भाले सवालों से ज्यादा जरूरी कोी सवाल नही.

kavita verma said...

bahut khoob..

Onkar said...

बहुत सुन्दर

कालीपद "प्रसाद" said...

चंद बदनसीबियां
हरगिज़ न दोहरायी जानी थीं--
जैसे भूख और जंग।
सच !
अभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : रावण जलता नहीं
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .

रश्मि शर्मा said...

सच ..बहुत सुंदर