लाल सिंह दिल पंजाब के चर्चित कवि हैं। हाल ही में उनकी किताब देखने को मिली, इत्मीनान से पढ़ने को अभी नहीं, हालांकि मुझे उम्मीद है जल्द ही उनकी किताब पढ़ने के लिए भी मुझे हासिल हो जाएगी। लाल सिंह दिल की ये दो कविताएं अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने से रोक नहीं सकी।
1.
जब
बहुत-से सूरज मर जाएंगे
तब
तुम्हारा युग आएगा
है ना?
...
2.
वह साँवली औरत
जब कभी ख़ुशी में भरी कहती है--
"मैं बहुत हरामी हूँ !"
वह बहुत कुछ झोंक देती है
मेरी तरह
तारकोल के नीचे जलती आग में
तस्वीरें
जब कभी ख़ुशी में भरी कहती है--
"मैं बहुत हरामी हूँ !"
वह बहुत कुछ झोंक देती है
मेरी तरह
तारकोल के नीचे जलती आग में
तस्वीरें
क़िताबें
अपनी जुत्ती का पाँव
-
- बन रही छत
- और
- ईंटें ईंटें ईंटें
- बन रही छत
2 comments:
हां, राजनीतिक चेतना से ओतप्रोत शानदार कवि, खरा। नक्सल आंदोलन का प्रखर कवि जिसकी जाति उसका पीछा करती रही। हिंदुस्तानी समाज की कड़वी सच्चाई जो किसी संघर्ष, किसी प्रतिभा की कद्र नहीं करती। बहरहाल, लाल सिंह दिल के यहां संघर्ष, सपने और विडंबनाओं की सच्ची छवियां हैं।
अब तो आपके पास किताब है.. और बेहतर कविताएं डालिए..
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