सचमुच हमारी दुनिया तेज़ी से बदल रही है। हमारी दुनिया, मतलब हम
लड़कियों की दुनिया। औरतों के खिलाफ़ अपराध बढ़े हैं, ये भी एक बड़ी और कड़वी
हक़ीकत है, लेकिन इस सच को नकारा नहीं जा सकता की परिवार में और परिवार से बाहर भी
लड़कियां किन्हीं स्तर पर लड़कियों के हालात में सुधार हुआ है। पहले परिवार में खानपान में भी बेटियों और बेटों के बीच फर्क किया
जाता था। पढ़ाई और स्कूल में फर्क किया जाता था। अब ये बदला है, बल्कि कुछ घरों
में तो लड़कियों को पब्लिक स्कूल में पढ़ाया जाता है।
पर ये तो तय है कि महिलाओं से भेदभाव खत्म नहीं हुआ है। लेकिन यहां
मैं उन लड़कियों के बारे में लिखना चाहती हूं शादी के दिन जो सजधज कर बारात लेकर दूल्हे
के आने का इंतज़ार करती हैं, दहेज की वजह से मगर वो बारात नहीं आती और उन लड़कियों
का बहुत शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जो दहेज मांगनेवाली बारातों को शादी के मंडप
से वापस लौटाती हैं।
बुलंदशहर में एक मुस्लिम परिवार की लड़की का निकाह का दिन आ गया था। मां-बाप,
भाई-बहन सब शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे। मगर शादी के दिन की सुबह ही फोन
आया, लड़की के पिता से एक लाख रुपये और मोटर साइकिल की मांग की गई। पिता इस स्थिति
में नहीं थे कि लड़केवालों की इस डिमांड को पूरी कर पाते। मुस्लिम परिवार में तो दहेज
प्रथा भी नहीं थी, मगर लड़कियों का ये अभिशाप मुस्लिम समाज में भी तेजी से फैलता
जा रहा है। लड़कीवाले बारात का इंतज़ार करते रहे, बारात नहीं आई।
जिस परिवार में लड़की का निकाह किया जा रहा था, लड़का और उसका पिता
दोनों डॉक्टर थे। ये भी हैरान करनेवाली बात है। अलीगढ़ के रहनेवाले थे वो। बारात न
आने पर लड़की के पिता ने पुलिस में मामला दर्ज कराया। लड़केवाले घर पर ताला डाल
निकल गए।
ये तो घटना है। मगर इसके बाद जो होता है वो बारात न आने से भी ज्यादा
खराब होता है। कि अब लड़की का क्या होगा। जिसके नाम पर मेहंदी रचायी, वही नहीं
आया, उसकी ख़ुशियां उजड़ गईं, उसके परिवार की ख़ुशियां उजड़ गई, लड़की की ज़िंदगी
बरबाद हो गई। फिर लड़की को कोसना और लड़की का खुद को कोसना। ये सबसे खराब पहलू है।
पहले तो लड़की, फिर उसका परिवार, उसका मोहल्ला, रिश्तेदार और समाज ये सब मिलकर एक
भयावह स्थिति बना देते हैं।
नहीं, लड़की की ज़िंदगी बरबाद नहीं हुई, बल्कि बरबाद होने से बच गई।
ये बहुत ही साधारण बात है मगर इसे जटिल बना दिया गया। लड़की अगर ऐसे परिवार में
चली जाती जहां भावनाओं का मोल नहीं रुपयों की ही कीमत है। उसे क्या हासिल होता।
दहेज के लिए प्रताड़ित होने और चरम पर जला दिए जाने से तो अच्छा है कि दहेज के नाम
पर होनेवाली शादी के टूट जाने पर राहत की एक बड़ी लंबी सांस ली जाए। ख़ुश हुआ जाए कि
बेटी बच गई।
पिता तसल्ली लें और मोहल्ला संतुष्ट हो कि बच्ची बच गई। मां अपनी बेटी
को पुचकारे कि किसी कमीने के लिए रचायी गई उसकी मेहंदी जितनी जल्दी छूट जाए अच्छा।
फिर मेहंदी किसी और के लिए नहीं लड़की अपने लिए ही लगाती है। ऐसी बारात जो दहेज की
रकम बटोरकर आए उससे अच्छा कि न आए ऐसी बारात।
और वो लड़कियां जो शादी के मंडप से दहेज मांगनेवाली बारातों को लौटाती
हैं, उनका समारोह कर स्वागत किया जाना चाहिए।
2 comments:
ऐसे लोगों का जब तक सामाजिक बहिष्कार नहीं होता,तब तक ये नहीं सुधरेंगे.कोई भी अन्य परिवार उस लड़के के साथ अपनी बिटिया की शादी करने के लिए संकल्प ले ले तो शायद हालत सुधर जाये.
लडकियों को हिम्मत दिलानी चाहिये अभिभावकों ने भी और समाज ने भी । ऐसे लालचियों से पीछा छूटा बहुत बढिया ।
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