23 June 2008

कितना पानी- इतना पानी

बोल मेरी मछली कितना पानी-इतना पानी-इतना पानी। बचपन का ये खेल इस वक़्त खेला जा सकता है। बारिश हो न हो, बारिश की फुहारों की धुन आप महसूस कर सकते हैं। अब के बादल इतने जमकर बरस रहे हैं कि तन भी भीगे, मन भी भीगे, सड़कें जून में तालाब बनीं और ज़ोर-जोर से हुंकार मारकर, गुनगुना-झूम-गाकर मॉनसून जुलाई की जगह जून में आ टपका। सावन के गीत जेठ में गाए जाने लगे। सूखे बुंदेलखंड में बाढ़ की स्थिति बन रही है। बनारस के घाट पानी में डूब गए हैं। हरिद्वार में संतगण गंगा को बचाने के लिए अनशन कर रहे हैं। पर इससे क्या होता है। बुंदेलखंड में जहां ये पानी ख़ून से ज्यादा महंगा है, वर्षा के जल को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है। दम तोड़ते ऐतिहासिक तालाबों तक ये जीवनधारा पहुंचाने के लिए क्या कर रहे हैं हम। यूपी के कई ज़िलों में ज़मीन में दरार पड़ गई क्योंकि भूजल स्तर गिरने से दुबली हुई ज़मीन बारिश की धार सह नहीं पाई, तो अब वर्षा का जल नालों में न बहे, ये सुनिश्चित करने के लिए, अफसोस कहीं कुछ नहीं किया जा रहा। रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानी वर्षा जल संचयन पर बात करने के ये सही समय है। शब्दों-सवालों-ख़बर हर तरह से हम इस मुद्दे पर अपनी आवाज़ बुलंद कर सकते हैं। कम से कम बुंदेलखंड के लिए तो ये बहुत जरूरी है। कहां बुंदेलखंड में कृत्रिम बारिश की बात कही जा रही थी, अब जब बादलों ने
डेरा जमा लिया है तो उन्हें रूठने न दें। कई बार लगता है कि ऐसी बातों को लिखने से क्या फर्क़ पड़ता है। पर क्या पता कहीं कुछ फर्क़ पड़ता हो।

2 comments:

Udan Tashtari said...

इस तरह के सामाजिक मुद्दों पर लिखना बहुत जरुरी है. आप लिखते रहें, कोई तो सुनेगा. शुभकामनाऐं एवं साधुवाद.

Advocate Rashmi saurana said...

bilkul sahi.aap likhate rhe.