आठ घंटे की नौकरी
आप आते हैं
उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं
फिर बातें...थोड़ी इधर की...थोड़ी उधर की
हाथ में एक स्क्रिप्ट लिया
अब थोड़ी देर टहलिए
काम के बीच
थोड़ी चाय, और चाय के साथ
देश के हालात पर गंभीर चर्चा
भ्रष्टाचार, चमचापरस्ती,
लड़कियों की अदाओं से लेकर
केबिन की हलचलों पर
कुछ तर्क-कुतर्क
जिससे पता चलेआप बुद्धिजीवी हैं
आप सोच समझ सकते हैं
इन सारी बात के बीच कुछ जलनकुकड़ी बातें भी
बॉस ने इसे उठाया...उसे गिराया
आपने किसे उठाना है
किसे गिराना है
थोड़ा काम ढेर सारा आराम
जब बॉस दिखें
तो व्यस्त लगने की पूरी कोशिश करें
इतनी कि बॉस को यकीन हो जाए
और ओझल हों तो बातों की बोरी खोलिए
आठ में से छे घंटे
बिना किसी परेशानी के कट जाते हैं
बाकि बचे दो घंटे
चूंकि काम करने वाले ज़्यादा हैं
काम कमआप बोर होते हैं
गुस्सा आता है
फिर कहते हैं
ये भी कोई जगह है
साला...
कोई काम नहीं
आओ, बैठो, बातें करो और चले जाओ
व्यवस्था पर आपको गुस्सा आता है
इतना कि ब्लडप्रेशर पर कोई असर न हो
एक घंटा पैंतालिस मिनट इसमें कट जाएंगे
बाकि बचा पंद्रह मिनट
अब एक नई उर्जा धमनियों में दौड़ रही है
मुर्झाया चेहरा खिल उठा
एक दिन की रोज़ी बनी
अब जाना है
आनेवालों से मिलिए
जानेवालों को सलाम किजिए
कल की कोई चिंता नहीं
आप ख़ुश हैं
बिना किसी काम के
कामचोरी के लिए कड़ी मेहनत करने के बाद
अब वक़्त घर वापसी का है
नाइट गुड है
रात को नींद भी अच्छी आती है
चेहरे पर कोई शिकवा-शिकन नहीं
यही तो है आठ घंटे की नौकरी के सुख
और दर्द भी...।
(एक टीवी चैनल के डेस्क पत्रकार के हाल पर लिखी गई कविता)
3 comments:
शर्म करो...इसको पढकर के लगता है कि मै अब मरा कि तब मरा....ऐसा बुरा हाल है टीवी पत्रकारिता में मगजमारी का....
प्रकौ
शर्म करो...इसको पढकर के लगता है कि मै अब मरा कि तब मरा....ऐसा बुरा हाल है टीवी पत्रकारिता में मगजमारी का....
प्रकौ
शर्म करो...इसको पढकर के लगता है कि मै अब मरा कि तब मरा....ऐसा बुरा हाल है टीवी पत्रकारिता में मगजमारी का....
प्रकौ
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