पानी के बहाव को जितने ज़ोर से रोकने की कोशिश करेंगे उतने ही बल के
साथ पानी निकलेगा। “किस ऑफ लव” प्रतिरोध का प्रतीक है। अलग तरह से किया जा रहा प्रतिरोध। जो प्रेम की अभिव्यक्ति की आज़ादी मांग रहा है। प्रतिरोध के तरीके
को लेकर कुछ लोग आतंकित हैं। ये तो अश्लीलता है। प्रतिरोध का तरीका कुछ और भी तो
हो सकता है। लड़का-लड़की को साथ खड़े देखने से ऐतराज करनेवाले लोग “किस ऑफ लव” को देखकर इतने तक
पर तैयार हो गए हैं कि हाथ में हाथ डालकर प्रदर्शन कर लेते। एक दूसरे को फूल देकर
प्रदर्शन कर लेते। एक दूसरे को सार्वजनिक तौर पर चुंबन लेकर प्रतिरोध कैसा। प्रेम
का प्रतीक चुंबन प्रतिरोध का प्रतीक बन गया है।
वो प्यार जिसे चाहते सब हैं लेकिन छिपकर। ज्यादातर बुजुर्ग इसे “कैसा जमाना आ गया है” समझते हैं, जो अपने
वक़्त में बिना मां की इजाजत लिए अपनी पत्नियों के पास नहीं जा सकते थे। पत्नियों
का चेहरे तक नहीं देख सकते थे। सड़क पर पत्नियां उनसे ढाई कदम पीछे ही चलती थीं,
वो अपनी पत्नियों के आगे-आगे। जमाना कुछ दशक फलांगकर आगे बढ़ा तो जोड़े रेस्त्रा
में बैठने लग गए, साथ घूमने-फिरने लग गए। कुछ दशक फलांगकर ज़माना फिर बदला। एक
दूसरे को देख लेने भर से प्यार हो जाने, और एक दूसरे को छू लेने भर से सिहर
उठनेवाले लोग देख रहे हैं, नए लड़के-लड़कियां बेपरवाही से एक दूसरे के कंधे पर धौल
जमाकर चल यार कह रहे हैं। सबकुछ नॉर्मल है। लड़कों के हाथ खींचकर लड़कियां सड़क पर
ले जा रही हैं। हां इसी ज़माने में अब भी लड़कियों की जींस और मोबाइल पर फतवे जारी
हो रहे हैं। इसी खींचतान में ज़माना बदल रहा है।
किस ऑफ लव आंदोलन की बुनियाद केरल के कोझिकोड में एक कॉफी शॉप में
पड़ी। कॉफी शॉप की पार्किंग में लड़का-लड़की एक दूसरे को किस कर रहे थे। और कुछ
लोगों ने नैतिकता का ठेका लेते हुए उन पर हमला कर दिया। केरल के बीजेपी और
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया। सब नैतिकता के ठेकेदार
बन गए। जबकि आम लोगों ने इस पर कोई एतराज नहीं किया। राज्य के युवाओं ने 2 नवंबर
को प्रतिरोध स्वरूप किस डे मनाने का फैसला किया। किस ऑफ लव के नाम से एक फेसबुक
पेज भी बना, जिससे इस आंदोलन की आंच तेज़ हुई।
गौर कीजिए कि केरल देश का सबसे शिक्षित राज्य है। यहां के नौजवानों पर
इतना भरोसा तो बनता ही है। मोरल पुलिसिंग के नाम पर उत्पात मचानेवालों के खिलाफ
यहां के नौजवानों ने प्रेम के इज़हार का आंदोलन बनाया। अब सवाल है कि किस करना
अश्लील हरकत कैसे हो सकता है, ये तो प्यार की निशानी है। प्यार के अधिकार के इस आंदोलन
में इतनी आग थी कि दिल्ली-मुंबई-कोलकाता तक के छात्र-छात्राएं इसमें शामिल हुए। ये
नफरत का जवाब प्यार से देने की कोशिश है। छात्र-छात्राएं एक दूसरे को चूमकर अपना
विरोध दर्ज करा रहे थे। उन्हें इसमें कोई अश्लीलता नहीं लगती। सिर्फ लड़के-लड़कियों ने एक दूसरे को नहीं चूमा, बल्कि लड़कियों ने लड़कियों को और लड़कों ने लड़कों को भी चूमा। ये एक सहज भाव के चुंबन थे, बिना किसी लाग लपेट के चुंबन। आज के दौरे में युवा अपने तरीके से जीने और प्यार का इज़हार करने को आज़ाद हैं।
मॉरल पुलिसिंग की
घटनाएं इन दिनों तेजी से बढ़ी हैं इसलिए प्रतिरोध का ये नया तरीका भी सामने आया। इस
तरीके से हैरान एक गुट संस्कृति की दुहाई लेकर सड़कों पर आया। उसने नारा
दिया-प्यार करो पर अपनी संस्कृति के अनुसार। बहुत सारे लोग प्रतिरोध का चुंबन
स्वीकार नहीं कर पा रहे। वो मॉरल पुलिसिंग का विरोध तो करते हैं लेकिन इस तरह के
प्रतिरोध को उचित नहीं ठहराते। उन्हें लगता है कि प्रतिरोध का तरीका कुछ अलग हो
सकता है। एक दूसरे को सार्वजनिक तौर पर चूमना, किस करना उनके लिए कुछ ज्यादा ही हो
गया वाली बात है। कुछ इस प्रतिरोध के समर्थन में भी हैं। वो प्रेम की अभिव्यक्ति
की आज़ादी की मांग करते हैं। दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय
में भी “किस ऑफ
लव” का
आयोजन हुआ। छात्र-छात्राओं ने वेदों तक का हवाला दिया। प्रेम तो हमारी संस्कृति का
हिस्सा है। खजुराहों की दीवारें इसकी प्रत्यक्ष गवाह हैं।
कोलकाता-हैदराबाद-मुंबई में भी छात्र अपने किस ऑफ लव की तख्तियां उठाए
सड़कों पर आए। अपने साथियों को चूमा। मॉरल पुलिसिंग का विरोध किया। ये मॉरल
पुलिसंग करनेवाले उस वक़्त कहां चले जाते हैं जब किसी लड़की के साथ बीच सड़क पर
छेड़छाड़ होती है। याद कीजिए असम के गुवाहाटी की घटना। पूरी भीड़ लड़की के साथ
अश्लील हरकतें कर रही है, छेड़खानी कर रही है, वही लोग मॉरल पुलिसिंग करने लगते
हैं। कभी किसी रेस्त्रां में घुसकर बैठे जोड़े पर हमला बोल देते हैं। लड़के-लड़कियों
के बाल काटने लगते हैं, पार्क में लड़कियों के बाल पकड़कर खींचते हैं। ये उस
संस्कृति की पहरेदारी कर रहे हैं जिसमें बलात्कार की घटनाएं आम घटना गिनी जा रही
होती है। हर किसी घंटे कहीं कोई लड़की शोषण का शिकार हो रही होती है। तीन-चार साल
की मासूम बच्चियों तक को दरिंदे नहीं छोड़ रहे। स्कूलों में बलात्कार हो रहे हैं,
बसों में बलात्कार हो रहे हैं, भीड़भाड़ वाली सड़क पर कोई लड़की कार में खींच ली
जाती है, खून से सनी किसी वीराने में फेंक दी जाती है। मॉरल पुलिसिंग करनेवाले
लोगों की मॉरेलिटी तब कहां चली जाती है। जो वयस्क लोगों को किस करने से रोकने के
लिए सड़कों पर मोर्चा खोलते हैं। वो बलात्कारियों के खिलाफ मोर्चा क्यों नहीं
खोलते। ये हमारा दोहरा चरित्र दिखाता है। कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।
सार्वजनिक तौर पर अश्लीलता को लेकर कानून हैं। अगर कहीं कोई अश्लीलता
हो रही हो तो उससे कानून के दायरे में निपटा जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 294(ए)
के तहत अगर कोई सार्वजनिक स्थल पर अश्लील क्रिया करते देखा जाता है तो उसे तीन
महीने तक की सज़ा हो सकती है, या जुर्माना, या दोनों ही। नौजवान कानून की सीमाएं
जानते हैं। नैतिकता की ठेकेदारी के विरोध में प्रतिरोध का चुंबन लिया जा रहा है।
अब इसे रोकने के लिए आंसू गैस चलाएं, लाठियां फटकारें। देश का युवा अपने लिए प्रेम
के इज़हार की आज़ादी का दावा कर रहा है। इसके लिए कई युवाओं ने गिरफ्तारी भी दी,
उन पर केस भी दर्ज किए गए।
(चित्र गूगल से साभार)
No comments:
Post a Comment