यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर, बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
19 March 2012
नेन्सी,जेरी की याद में...
पामुक का कुत्तों पर लिखा एक अंश पढ़ रही थी। मेरे मन में भी एक कुत्ते की छवि उभर आई, मुझे घूर रहा था, शायद पूंछ भी हिला रहा था। कुत्ते जब बिना भौंके या गुर्राए, सामान्य हालत में घूरते हैं तो ऐसा लगता है कि उनसे ज्यादा दया का पात्र कोई और नहीं होगा। पामुक को पढ़ मैं भी खुद को लिखने से नहीं रोक पायी, उम्मीद है किसी को बुरा नहीं लगेगा।
ये जो कुत्ता मुझे ख्याल आया, वो रोज सुबह सवेरे चाय के ठेले पर मिलता है। वैसे तो कुत्तों की पूरी चौकड़ी है वहां। पर ये वाला लोगों के बीच में कुछ ज्यादा ही जाता है। चाय के साथ लोग बिस्किट-रस-मठ्ठी भी खाते हैं, उसकी निगाहें बिस्किट मठ्ठी पर जमी होती हैं। चाय के ठेले पर कुछ लोग कई बार बड़ी दिलदारी का परिचय देते हुए कुत्ते को मठ्ठी खिलवा देते हैं, कई बार मजबूरी में, कई बार हिकारत में। ये कुत्ता कई बार तो पीछे ही पड़ जाता था। चाय पीना मुश्किल हो जाता और मुझे तो कुत्तों से डर भी बहुत लगता है।
एक और कुत्ते का ख्याल आता है। सुबह ऑफिस के लिए घर से निकलते वक़्त मिलता है वो। मेरे फ्लोर से दो फ्लोर नीचे के घर में रहता है। सुबह उसके मालिक साहब उसे टहलाने ले जात हैं। जैसे ही लिफ्ट उस फ्लोर पर खुलती है मेरी घिघ्गी बंध जाती है। बल्कि घिघ्गी बनना किसे कहते हैं ये भी उस कुत्ते की वजह से मुझे पता चला। अब हमारी अंडरस्टैंडिग हो गई है कि कुत्ता टहलाने निकले अंकल जी मुझे देख लिफ्ट में प्रवेश ही नहीं करते, अलबत्ता कुत्ता जरूर अंदर की ओर भागता है। मैं भी उन्हें ऑफर करती हूं कि आप पहले नीचे चले जाइये, मैं बाद में आ जाऊंगी, पर वो मना कर देते हैं और मैं लिफ्ट के साथ नीचे चली जाती हूं।
दो कुत्ते तो मेरे बहुत प्रिय थे। जेरी और नेन्सी। इस बहाने उन्हें याद करने का मौका मिला। दोनों पॉमेलियन थे। पहले जेरी घर में आया था। मैं तब शायद 11वीं में पढ़ती थी। महीनेभर का भी नहीं था तब वो। मैं डरती थी। उसे छूने का जी चाहता था तो ग्लब्ज पहनकर छूती थी। एक बार मेरा पैर उसके खाने के टिफिन पर पड़ गया था, बहुत ज़ोर से भौंका वो, कुत्तों के प्रति मेरा डर और गहरा गया। अगर वो मेरी तरफ चुप हो घूरता तो मैं डर जाती। वो गुस्सैल कुत्ता था। लेकिन बाद में वो मुझे बहुत प्यार करने लगा।
कभी उसे भूख लगती तो वो मेरे पास आता, आगे वाले दोनों पांवों को हाथ की तरह इस्तेमाल कर मुझे बुलाता, लाड दिखाता, मैं समझ जाती, इसे भूख लगी है।
जेरी बीमार चल रहा था। मैंने सपना देखा वो बहुत कमज़ोर-बेहद बीमार, मुझसे गंगाजल मांग रहा था। मैं अचंभित थी। इस सपने के तीन रोज बाद उसकी मौत हुई थी। हम उसे लेकर डॉक्टर के पास कई बार भागे। उस रोज भी डॉक्टर के पास से लेकर आए थे। मेरा अनुमान है कि डॉक्टर को मालूम पड़ गया होगा कि अब ये नहीं बचेगा, इसीलिए कोई ऐसा इंजेक्शन उसने लगाया कि घर आने के बाद जेरी चुप सा हो गया, आंखें पत्थर की तरह जमती चली गईं, ज़िंदगी कैसे मौत में समा जाती है।
उसके सफेद फर्र से बाल घर में चारो तरफ बिखरे रहते थे। उसकी मौत के बाद अपने बचकानेपन में, मैंने उसके बालों का एक गुच्छा सा वेलवेट के कपड़े में संभालकर रख दिया। मुझे सपने आने लगे। सपने में जेरी गुर्राता, गुस्सा होता, मैं डर जाती और सोचती आखिर वो मुझ पर नाराज़ क्यों हो रहा है, जबकि वो तो मुझे बहुत चाहने लगा था। फिर ख्याल आया। मैं वेलवेल कपड़े में रखी जेरी की याद को लेकर छत पर गई। उसके सफेद बालों का गुच्छा हवा में उड़ा दिया। उसके बाद मैंने जेरी का कभी कोई डरावना सपना नहीं देखा।
जेरी की मौत के कुछ वक़्त बाद नेन्सी घर आई थी। जेरी बहुत खूबसूरत था। नेन्सी थोड़ी कम। जेरी गुस्सेवाला था, नेन्सी चापलूस टाइप्स। जब वो छोटी सी थी, जाड़ों में हम उसे रजाई के अंदर लेकर बैठ जाते। उसे बिस्तर पर लाने पर मम्मी बहुत डांटती, पर हम उसके मासूम चेहरे को देखते, वो हमारे पास आना चाहती थी, फिर हमसे रहा न जाता।
नेन्सी को बहुत लाड मिला, जैसे घर में छोटे बच्चे को मिलता है। हमारे साथ ही रहती-मंडराती-कई साल इसी तरह गुजरे। मैं लखनऊ से दिल्ली चली आई थी। कुछ वक़्त बाद मेरी छोटी बहन भी मेरे पास चली आई। नेन्सी अकेली रह गई। तब लखनऊ जाने का ख्याल आता तो सबसे पहले नेन्सी की याद आती, वो बुरी तरह हमसे लिपट पड़ती, गुस्सा होती, चाटती, बिलकुल नहीं छोड़ती। उससे मिलने के बाद ही हम किसी और से मिल सकते थे। इतनी गर्मजोशी से हमारा स्वागत कोई नहीं करता, जितना नेन्सी।
पर अब लिखते हुए सोचती हूं कि हमारे आने के बाद वो अकेली रह गई होगी, तकलीफ होती होगी उसे, वो हमारे साथ-साथ ही तो रहती थी।। उसकी मौत की ख़बर फोन पर मिली थी। मैं चुप रह गई, मेरी बहन बहुत रोई।
एक और कुत्ते के बारे में जरूर लिखूंगी। सुबह तड़के ऑफिस के लिए घर से निकली थी। वो चुपके से बना आवाज़ किए आया और मेरा पैर उसने अपने दांतों में पकड़ा ही था कि मैं ज़ोर से चीखी, मेरी चीख निकलते ही सड़क पर कुछ लोग दहाड़ पड़े, कुत्ता भाग निकला, मैने जींस पहनी थी, तो उसके दांत मेरे पैरों तक पहुंच नहीं बना पाए।
और भी कई कुत्तों से पाला पड़ा। दो-चार पैरवाले। पर याद करने के लिए इतने किस्से बहुत हैं।
(चित्र गूगल से साभार)
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6 comments:
bahut achchha laga aapka pyara sa aalekh.हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें .
नेंसी और जेरी की मीठी यादें अच्छी लगीं। सोचता हूँ कि भारत में कुत्तों के नाम अक्सर अंग्रेज़ी में क्यों होते हैं.
अच्छी प्रस्तुति...
.
# और भी कई कुत्तों से पाला पड़ा। दो-चार पैरवाले।
:)
रोचक पोस्ट ! क्या बात है ...
वाह वाह !
बहुत खूब
नेन्सी और जेरी की यादें अच्छी लगीं । मुझे भी पहले कुत्तों से बहुत डर लगता था पर अब नही लगता । हमारे बेटे ने भी एक कुत्ता पाल लिया है नाम है डेक्स्टर । बहुत प्यार करने वाला कुत्ता है डेक्स्टर ।
अच्छा पीस है। युधिष्ठिर के साथ कुत्ते के स्वर्ग जाने के मिथ को छोड़ भी दें तो भी कुत्ते और मनुष्य अरसे से साथ रहते आ रहे हैं। इस सह अस्तित्व की ऊष्मा इस पीस में भी झलकती है।
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