03 May 2010

ये रोना रोने का बहुत मन कर रहा है। हम औरतों के अधिकारों को लेकर ख़बरें बनाते हैं। कभी कोई ऐसी ख़बर आ जाती है कि स्टोरी को इमोशनल टच देना होता है तो स्क्रिप्ट हमारी तरफ बढ़ा दी जाती है। औरतों की ख़बर बनाने के लिये ज्यादातर औरतों से ही उम्मीद की जाती है। पर दरअसल मैं ये बताना चाहती हूं कि दूसरी औरतों के अधिकारों को छिनने, उन पर अत्याचार की ख़बर बनानेवाले हम, अपने अधिकारों के लिये कुछ नहीं कर पाते, अपना रोना भी नहीं रो सकते। गुस्सा आता
है। चेहरे की ख़ामोश, अन्यमनस्क और उदास सी भाव-भंगिमाओं के अंदर बहुत गुस्सा सुलगता है। किस्सा क्या है वो भी बताती हूं। सालों से हम अपनी सैलरी बढ़ने-कटने,प्रमोशन पर उम्मीदें गड़ाये बैठे रहते हैं। मैं भी। हमारे एचआर डिपार्टमेंट ने
सारे स्टाफ की प्रोफाइल मांगी। कुर्सी की शोभा बढानेवाले वरिष्ठों ने बनाई। मैं और मेरी एक और कलीग मेटरनिटी लीव पर थे..हमारा प्रोफाइल मेटरनिटी लीव गया। इतने सालों से हम क्या कर रहे हैं इसका कोई मतलब नहीं। हम प्रेगनेंसी के दौरान नौ महीने तक लगातार ऑफिस आते रहे, लगातार काम करते रहे, हमारी सारी मेहनत पर एक जनाब ने मेटरनिटी लीव का प्रोफाइल डालकर पानी फेर दिया। मेरे साथ काम करनेवाली कई लड़कियों के साथ ऐसा हो चुका है। जब वो मेटरनिटी लीव पर रहीं तो उनके पैसे नहीं बढ़ाये, प्रमोशन नहीं किया, निर्लज्जता ये कि उन्हें बताकर ऐसा किया गया। शर्म आती है खुद पर...बेशर्म लोगों पर तो शर्म की नहीं जा सकती न।
सिर्फ यही नहीं, लड़कियों को ऑफिस में इतनी जगहों पर लिंगभेद का सामना करना पड़ता है जिन्हें लिखना खुद को और ज्यादा शर्मसार करने जैसा लगता है।

2 comments:

kunwarji's said...

"सिर्फ यही नहीं, लड़कियों को ऑफिस में इतनी जगहों पर लिंगभेद का सामना करना पड़ता है जिन्हें लिखना खुद को और ज्यादा शर्मसार करने जैसा लगता है।"

jab aawaaj uthhani hai hai to jhuthi sharm rakhni padegi,
aapki ye baat satya ke bahut kareeb se aayi hai!lekin private naukri me koi apne hisaab se kuchh nahi kar sakta ji,


kunwar ji,

राज भाटिय़ा said...

वर्षा जी बहुत सुंदर ढंग से ओर सही बात कही आप ने सच मै ऎसी बातो के कारण दुख होता है,