05 March 2009

बचपन के मास्टर




कभी-कभी मुझे बचपन के स्कूल टीचर्स का ख्याल आता है। उनसे जुड़ी तमाम यादें दिमाग की कोशिकाओं में छिपी हुई हैं। उनका पढ़ाना, उनके पढ़ाने का तरीका सबकुछ। टीचर अच्छा हो तो पढ़ाई भी अच्छी होती है, टीचर पर बहुत कुछ निर्भर करता है।

छठी क्लास में हमारे एक 'सर' हुआ करते थे। नाम था प्रमोद कुमार सिंह, हम उन्हें पीके सर कहकर बुलाते थे, पीके पर ज़रा ज़ोर डालकर। वो अच्छा पढ़ाते थे। इसीलिए तब मेरी साइंस बहुत अच्छी थी। सारी क्लास को हथेली पर स्केल खानी पड़ती थी, पर मुझे मिलाकर कुछ और लोगों को ये आशीर्वाद नहीं मिल पाता था।

एक थे मिश्रा सर। दांत बड़े-बड़े, मूंछें दांतों को छूती हुई। संस्कृत पढ़ाते थे। एक चैप्टर से एक-एक वाक्य सभी को बोलना होता था। बच्चे रटंत विद्या पर लग जाते थे, सर के खर्राटे पर संस्कृत के शब्द कंपकंपाने लग जाते थे।

और एक तो बहुत ही दुष्ट किसम के सर थे। त्रिपाठी सर। बस गुस्साना जानते थे। जब तक उन्होंने मैथ्स पढ़ाई, किताब खोलने का जी नहीं चाहता था। अगली क्लास में मास्टर बदल गया और गणित के सूत्रों की हमारी समझ में जान आ गई।

ऐसा नहीं कि गुस्सैल मास्टर बुरा होता हो। सुधा मैडम। इंटर में वो हमें फिजिक्स पढ़ाती थीं। हमने उनकी ट्यूशन ली थी। क्लास का तो पता नहीं पर ट्यूशन का असर हुआ। फिजिक्स मुझे पसंद आ गई।

लेकिन मैथ्स के अच्छे टीचर्स नहीं मिले मुझे। सब रटंत विद्या घटंत बुद्धि वाले थे। मेरी बदकिस्मती, मेरा दोष।

आखिर में अपनी डांस की दो टीचर्स के बारे में भी। आरती और मीना मैम। दोनों की बेटियां बाद में मेरी पक्की सहेली बन गई थीं। बेटियों की सहेली बनते ही मुझे डांस में आगे की जगह मिलने लगी। नहीं तो पीछे धकेल दी जाती थी। ये बात मुझे बाद में समझ आई।

और भी बहुत सारे टीचर हैं, जिनसे जुड़ी कई बातें याद हैं। यादों को ठीक-ठीक लिख पाना मुश्किल होता है। वो यादों में ज्यादा सुंदर लगती हैं, शब्दों में वो बात नहीं आ पाती।

6 comments:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

अच्छा है आपके शिक्षकों से हमारा भी parichay हो गया...

222222222222 said...

बचपन के टीचर यादों में रहते हैं।

P.N. Subramanian said...

चलिए अब आपसे गणित के सवाल कोई नहीं करेगा. अच्छा लगता हैं अपने बचपन की यादों को दुहराना. आभार.

मोहन वशिष्‍ठ said...

स्‍कूल की याद दिला दी क्‍या दिन होते थे स्‍कूल के दिन अब भुलाए नहीं भूले जाते
बहुत अच्‍छा लगा आपको पढाकर नहीं पढकर

राज भाटिय़ा said...

हमारे एक हिन्दी के मास्टर जी थे, हर वाक्य के पीछे यानि जरुर लगाते थे, पहले बच्चो ने उन का नाम यानि रखा, फ़िर धीरे धीरे पुरे स्कुल मे उन्हे यानि नाम से ही जाना जाता था.
वर्षा जी बहुत ही सुंदर लगा आप के टीचरो से मिलना,
धन्यवाद

Sajal Ehsaas said...

mujhe bhi kuch isi tarah lagbhag sabhee teachers yaad hai bachpan ke....koi bhool bhi nahi saktaa :)