05 November 2008

हमें क्यों पसंद हैं ओबामा?



राष्ट्रपति पद पर ओबामा की जीत अमेरिका के लिए नये युग की शुरुआत है और हम सब की निगाहें भी ओबामा पर टिकी हैं। हालांकि आउट सोर्सिंग और न्यूक्लियर डील जैसे मसलों पर ओबामा की राय भारत के लिए सकारात्मक नहीं रही पर फिर भी ओबामा में अपनापन झलक रहा है। वजह, उनका अश्वेत होना? दुनिया के सबसे शक्तिशाली पद पर उस समूह का एक शख्स काबिज़ हो रहा है जो नस्लभेद का शिकार रहा, सदियों तक ग़ुलामी झेली, अपेक्षाकृत कमज़ोर वर्ग का प्रतिनिधि। क्या इसीलिए हम ओबामा से ज्यादा निकटता महसूस कर रहे हैं? ओबामा के रुप में अहंकारी अमेरिका की छवि भी टूटती है इसलिए भी शायद उनके खाते में ज्यादा समर्थन आया।

ओबामा के साथ-साथ हिलेरी क्लिंटन की दावेदारी ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव को इस बार ख़ास बना दिया था। मान लीजिए ओबामा सीन में नहीं होते, हिलेरी और मैक्केन आमने-सामने होते तब शायद हिलेरी के पक्ष में जनता जाती? फिर बुश की नीतियां भी रिपब्लकिन पार्टी के लिए हार की वजह बनी। ओबामा में अमेरिकी जनता को भी नई संभावनाएं दिख रही होंगी और दुनिया के दूसरे देशों को भी।

ओबामा नए हीरो की तरह लग रहे हैं। अमेरिका का बाज़ार पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। अमेरिका के राष्ट्रपति के फैसले पूरी दुनिया पर असर डालते हैं। इराक-अफगानिस्तान जैसे तमाम उदाहरण हमारे पास हैं। तो अमेरिका के नए राष्ट्रपति पर पूरी दुनिया की निगाहें तो होंगी ही। दुनियाभर में उनकी जीत का जश्न भी मनाया जा रहा है। जरूरी नहीं कि ओबामा की नीतियां भी भविष्य में लोगों को पसंद आएं पर फिलहाल ओबामा तो पसंद आ रहे हैं।

हो सकता है आनेवाले वक़्त में हमारे यहां भी ओबामा सरीखा परिवर्तन हो। यूपी की मुख्यमंत्री मायावती जैसे नेताओं की दावेदारी इस उम्मीद को जरूर आगे बढ़ाती है। हां लेकिन धर्म-जाति-क्षेत्र-भाषा जैसे मुद्दों पर हमारी तू-तू-मैं-मैं खत्म होगी? लगता नहीं है।

(चित्र बीबीसी से साभार)

12 comments:

महुवा said...

बिल्कुल ठीक..

महुवा said...

दुनिया के सबसे शक्तिशाली पद पर उस समूह का एक शख्स काबिज़ हो रहा है जो नस्लभेद का शिकार रहा, सदियों तक ग़ुलामी झेली, अपेक्षाकृत कमज़ोर वर्ग का प्रतिनिधि।

शायद इसीलिए.....

डॉ .अनुराग said...

चलिए आपने जो तर्क दिए ओबामा पर वो पिछले दो ब्लॉग से अलग लगे ....कही कही वजनी भी...वरना मै सोच रहा था की की आप भी कही वही न दोहराये.....

Unknown said...

कहां ओबामा, कहां मायावती। अरबपति मायावती ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है लेकिन ओबामा का कौन है। बाइ द वे गोरे काले की बहस से याद आया जरा ये बताइए कि आपकी जाति क्या है। प्लीज यह मत कहिएगा कि औरत की कोई जाति नहीं होती।

सोतड़ू said...

ये SOUL ठीक कह रही है- जाति ज़रूर बताना। इस देश में ऊंची जाति का आदमी मायावती का समर्थन करे पचता नहीं। न ही इन अगड़ों को कभी समझ आएगा कि क्यों मायावती मजबूत होती जा रही हैं और होंगी।
हालांकि मुझे लगता है कि हर आदमी कहीं न कहीं कम-ज़्यादा दलित होता ही है- कहीं भाषा की वजह से, कहीं क्षेत्र की वजह से, कहीं संबंधों के चलते। अब अंग्रेजी वाले भी कह सकते हैं कि ये गरीब हिंदी वाले आजकल बहुत ब्लॉग-ब्लॉग खेल रहे हैं....
बहरहाल ओबामा को मुबारक और हम सभी कालों को भी।

वर्षा said...

ये soul कौन हैं? न नाम बताया, न ठिकाना, सवाल भी पूछ गए। मायावती और ओबामा में कम से कम ये तो समानता है कि दोनों अपने-अपने मुल्कों के कमज़ोर तबके से ताल्लुक रखते हैं। हो सकता है मायावती कल की प्रधानमंत्री हों और हिंदुस्तान का नेतृत्व करें। इसीलिए बराक ओबामा के साथ मायावती का नाम रखा है। हां हमारी राजनीति के हमाम में तो सब नंगे हैं।
वैसे ये तय है कि आप अगड़ी जाति के हैं। मेरे पिता क्षत्रिय(ठाकुर,राजपूत)हैं और मेरे पति ब्राह्मण। पर मैं आपकी बात से सहमत हूं हमारी संस्कृति में औरतों की कोई जाति नहीं होती, वो सिर्फ औरत होती है।
दलित मायावती का शासन सवर्णों से कहीं बेहतर रहा है।

राज भाटिय़ा said...

अगर बुश ने या उस की पार्टी ने वेव्कुफ़िया ना की होती तो ओबामा कभी नही जीतता, यह सब बुश की गल्तियो का नतीजा है, ओर अमेरिकन एक ओरत को कभी भी नही उस जगह पर देखना चाहते, इस लिये ओबामा की जीत पक्की थी अगर हेलरी की जगह कोई ओर होता तो ...
माया ओर ओबामा ??????
हा माया प्राधान मत्री तो बन सकती है लेकिन देश का क्या होगा यह राम जाने????????

ab inconvenienti said...

सिर्फ़ राम क्या जानेगा, यह तो हर कोई जानता है की इस देश की किस्मत में लुटना ही लिखा है. लुटता रहा है, लुट रहा है, लुटता रहेगा. कल तक ऊपर बैठकर एक वर्ग ने लूटा, अब दूसरा वर्ग तैयार बैठा है अपनी कुंठाएं लिए. हिंदुस्तान से कहो की सुसाइड कर ले वरना ये अगडे, पिछडे और दलित नोंच-नोंच कर और तड़पा-तड़पा कर इसे जिंदा खायेंगे, और जब तक हो सके इसे मरने भी नहीं देंगे (एक ही तो मरियल शिकार है इनके पास).

यह अमरीका थोड़े ही है जो यहाँ कोई भी ऐरा गैरा बिना भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के सर्वोच्च पद तक पहुँच जाए. मायावती तो घूस के पैसों पर टेक्स भरती हैं, अरबों की लागत से जन्मदिन मनाती हैं, देश के हर चौराहे पर अपनी आदमकद प्रतिमा लगवाती हैं, गाँधी को सरेआम गली देती हैं, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, आजाद जैसे क्रांतिकारियों को आतंकवादी घोषित करती हैं. धन्य हैं. ओबामा इतने महान थोड़े ही हैं, विदेशियों की बुद्धि भारतीय मेधा का मुकाबला कभी नहीं कर सकती. :)

Arshia Ali said...

ओबामा अपने विचारों के कारण इस रिकार्डतोड जीत से आगे आए हैं। जाहिर सी बात है कि उनकी नीतियाँ भी पसंद आएंगी।

makrand said...

loktantra me ye adikar hi is system ki acchai hey

Ek ziddi dhun said...

senti nahi hone ka baby

Devesh Gupta said...

बिलकुल ठीक लिखा है हमें ओबामा शायद इसीलिये ही पसंद है .... ये भी ठीक है कि उसकी कुछ नीतियां भारत के पक्ष में नहीं हैं जिसमें आउटसोर्सिंग और न्यूकिलियर डील दो ऐसे मामले हैं जहां भारत को नुकसान उठाना पड़ सकता है ... लेकिन हम भारतीय बहुत भावुक हैं और बड़े से बड़े निर्णय लेने में हम सिर्फ दिल की सुनते हैं न की दिमाग की ...हां जहां तक मायावती का सवाल है तो इसमें कोई शक नहीं कि परिवर्तन के इस दौर में कुछ भी संभव है ...