30 August 2008

दो दोस्त भी न मिले ज़फ़र हैप्पी बड्डे कहने के लिए


काश किसी ने उन्हें हैप्पी बड्डे कह दिया होता, भई जनम वाले दिन में कुछ तो ख़ास बात होती है। ये जानते हुए की उम्र का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है ज़ेहन में हफ्तेभर पहले से ही सुरसुरी सी चालू हो जाती है। पुराने जन्मदिन, पुरानी पार्टियां, पुराने दोस्त, पुराने तोहफ़े, पुराने किस्से सब याद आने लगते हैं और जन्मदिन से उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं। लेकिन अब वो पहलेवाली बात कहां रही। फोन टनटनाता है तो लगता है जरूर किसी ने बधाई देने के लिए फोन किया है। अब दुनिया में आए हैं तो बधाइयां तो लेनी पड़ेगी। धत् तेरे की। कॉल तो जाने कौन सी क्रेडिट कार्ड कंपनी की ओर से थी।। हलो, हमने आपका नाम सलेक्ट किया है, हमारा क्रेडिट कार्ड लीजिए, बदले में ये मिलेगा-वो मिलेगा....। बड़ी भारी आवाज़ में न कहते हुए फोन कट किया और भारी हो चले मन को समझ का टॉनिक पिलाकर हलका करने की कोशिश की। फिर मोबाइल का मैसेज बॉक्स चेक किया। क्या पता किसी का एसएमएस आया हो और पता न चला हो, एक भी विश नहीं। मोबाइल फेंक दिया। अब इस उमर में जन्मदिन की बधाई भला कौन देता और फिर बधाइयों की उम्मीद ही क्यूं। खुद को न समझाएं तो करें क्या। थोड़ी देर बाद फिर मोबाइल घनघनाया। उम्मीदों को किनारे सरकाते हुए फिर हाथ बढ़े फोन की ओर, होगा किसी ऐरे-गैरे का फोन। हलो! मां, हां, थैंक्यू, अब इस उमर में क्या जन्मदिन मनाना, हां-हां केक खरीदकर खा लूंगा, अच्छा-अच्छा सेलीब्रेट भी कर लूंगा, हां चला जाऊंगा अकेले ही कहीं घूमने, तुम भी मेरी तरफ से लड्डू खा लेना, हां मां ठीक है, चलो रखता हूं फोन। एक मां ही तो थी जो दुख-सुख का ख्याल रखती थी। फ्रिज खोलकर कल के रखे स्वीटकॉर्न का डोंगा उठाया और खाली पेट को भरने की कवायद शुरू, टीवी भी ऑन ही था, पर देखा कुछ नहीं जा रहा था। इतनी मायूसी छाई थी। दो-चार फोन ऑफिस से आए। मगर किसी ने जन्मदिन की बधाई न दी। किसी को मालूम ही न था। मन कर रहा था चीख-चीख कर बता दूं आज जन्मदिन है मेरा, मुझे बधाई दो, happy b'day तो कहो। मन उलटपुलट कर रह गया, पुराने तोहफो को याद करने लगा, दो साल पहलेवाले जन्मदिन पर बारिश में की गई लॉन्ग ड्राइव की याद आई। वो भी क्या दिन थे। उस एक दिन ही तो पूरी आज़ादी मिलती थी घर में। चाहे कुछ करो, कोई रोकने-टोकनेवाला नहीं, यार-दोस्तों के ठहाके और....। पुरानी यादों को खींच कर दिमाग़ से फेंकने की कोशिश और तकिये में सिर घुसा कर नींद का आह्वान। पर नींद भी कैसे आती। फिर घंटी बजी। फोन की नहीं दरवाजे की। फूलों का गुलदस्ता आया था। हैप्पी बर्थडे लिखा हुआ था। मेरे लिए था। रो पड़नेवाली मुस्कान आई। ये तो वाकई मेरे लिए ही आया है। किसने भेजा है। कार्ड पर नाम नहीं लिखा। किसका होगा। दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगे, कौन-कौन-कौन। फिर बुके में लगे व्हाइट ग्लैडोलियस को रेशमी नज़रों से देखा। आह!

7 comments:

L.Goswami said...

happy b'day ...waise achchha likha hai.

उन्मुक्त said...

जन्मदिन मुबारक

Nitish Raj said...

भई अच्छा लिखा है कल मेरे एक ऑफिस में सहयोगी का जन्मदिन था हम लोग भूल गए तो हमारे पास आया बोला आज जन्मदिन है सबने गले लगालिया तकरीबन 20-22 लोगो नें। वैसे जन्मदिन मुबारक वर्षा जी

वर्षा said...

पाठक लोगों गलती हो गई, मेरा जन्मदिन तो कुछ महीने पहले निकल गया, ये दर्द-ए-दास्तां फिलहाल किसी और के लिए थी।

Smart Indian said...

अच्छा है - सच्चा है!

योगेन्द्र मौदगिल said...

wah....
achha likha...
badhai...

Ek ziddi dhun said...

pramod kaunswaal ki post kahan nikal di. ye to janmdin bhulne se bhi zyada ruswa karne wali baat hui. bade beaabru hokar..