
एक ख्याल आया अभी-अभी। नौकरी की उकताहट, मन में क्रिएटिविटी के उडते बुलबलों के बीच।
ख्याल की शुरुआत यहां से हुई कि मैं जहां रहती हूं पास में ही एक शॉपिंग कॉम्पलेक्स सरीखा है। बीच में फव्वारों के लिए बनी लंबी हौदी सी। दोनों तरफ खाने-पीने के लिये लगी रेस्तरां वालों की मेज़ें, उनसे आगे दुकानों का लंबा घेरा। गिफ्ट्स, गेम्स की एक शॉप है। उसकी मालकिन एक हल्की मोटी सी(अपने आगे सब हलके मोटे ही लगते हैं), ख़ुशमिज़ाज औरत है। उसकी एक कर्मचारी लड़की भी है। तिब्बत की है शायद। अच्छी फिगरवाली,घुटने तक की जींस पहनती है, स्मार्ट सी। उसे देख सोचती हूं पैसों की कितनी जरूरत होगी जो वो यहां काम करती है। उसकी दुकान मुझे पसंद है। वहां से मैं विंड चाइम, वॉल क्लॉक, शीशे के अंदर डांस करनेवाले जोड़े, पत्तियों की दो लताएं और काठ के घर में चीं-चीं करनेवाली चिड़िया, जैसी कई चीजें ले चुकी हूं।
तो ख्याल ये आया कि अगर मुझे वहां एक दुकान खोलने का विकल्प मिल जाता तो मैं किस चीज की दुकान खोलती (हालांकि मैं अच्छी तरह से जानती हूं ये काम मेरे बस का नहीं)।
और फिर जैसे कुल्हड़ में चाय पीते हैं, कुल्हड़ में लिक्विड चॉकलेट सरीखा कुछ ज़ेहन में उभर आया। मैंने सोचा चॉकलेट और बुक कैफे। लेकिन चाय और गर्मागरम कॉफी को छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता।
तो तय पाया गया... चाय,चॉकलेट,कॉफी और बुक कैफे। मन में ख़ुश्बू भी उठने लगी। चॉकलेट,चाय,काफी की सुगंध तो मुझे बहुत प्रिय है। नाक से ज़ोर की लंबी सांस खींचों और सुगंध को अंदर तक डुबो लो। आ..हा। सबकुछ कुल्हड़ में मिलेगा। कुल्हड़ भी थोड़े स्टाइलिश होंगे। वाह, मुंगेरीलाल के हसीन सपने।