यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर,
बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है
तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
28 July 2008
अगर कहीं मैं तोता होता
अगर कहीं मैं तोता होता तोता होता तो क्या होता ? तोता होता। होता तो फिर ? होता 'फिर' क्या? होता क्या? मैं तोता होता। तोता तोता तोता तोता तो तो तो तो ता ता ता ता बोल पट्ठे सीता राम (रघुवीर सहाय की एक कविता...एक पहेली)
insaan jo he use swikar kar leta...aur jo nahi uske liye ue nahi sochta ki me ye hota to kya hota? to kitne uttar dhundhne se bach jata.....nice sharing
6 comments:
सीता राम!
jai sita ram.
एक बात पक्की हे फ़िर आप तोती के पीछे जरुर भागते :)
वर्षा जी, रघुवीर सहाय की कविताएं मुझे भी पसंद हैं। लेख में अपना बहुमूल्य स्वर मिलाने के लिए धन्यवाद।
कुछ समझ तो नहीं आया मगर मज़ा ज़रूर आया, जैसे सामने वाले को हंसता देखकर हंसी आ जाती है.
insaan jo he use swikar kar leta...aur jo nahi uske liye ue nahi sochta ki me ye hota to kya hota? to kitne uttar dhundhne se bach jata.....nice sharing
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