यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर,
बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है
तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
06 August 2008
ऐसा नेता चाहिए?
(ये चित्र मुझे ई-मेल पर मिला, अवेयरनेस कैंपेन के तहत, आप भी देखें, जागें)
2 comments:
हा हा!! बहुत मजेदार!!
वाह क्या बात हे
Post a Comment