यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर, बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
18 November 2008
"बचाओ- विलुप्त हो सकते हैं गिद्ध"
अगले दस साल में विलुप्त हो सकते हैं एशियाई गिद्ध। इससे पहले भी मैं बचाओ सीरीज़ के तहत खतरे में आए प्राणियों पर जानकारी दे चुकी हूं। पृथ्वी के बहुत सारे जीव-जंतु बदले पारिस्थितक तंत्र में अपने अस्तित्व को खोते जा रहे हैं। एशियाई गिद्ध भी इन्हीं में से एक है। गिद्धों की संख्या में आ रही कमी के लिए ज़िम्मेदार है जानवरों को जी जानेवाली एक दवा, जिसका नाम है डाइक्लोफेनाक। ये दवा जानवरों को दर्द के लिए दी जाती है। हालांकि इस दवा पर प्रतिबंध हैं फिर भी ये बाज़ार में उपलब्ध रहती है और इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है।
एक सर्वे के मुताबिक सफ़ेद पूँछ वाले एशियाई गिद्धों की संख्या 1992 की तुलना में 99.9 प्रतिशत तक कम हो गई है। लंबे चोंच वाले और पतले चोंच वाले गिद्धों की संख्या में भी इसी अवधि में 97 प्रतिशत की कमी आई है। ज़ूलॉजिकल सोसायटी ऑफ़ लंदन के एंड्र्यू कनिंघम इस रिपोर्ट के सहलेखक भी हैं. वे कहते हैं, "इन दो प्रजातियों के गिद्ध तो 16 प्रतिशत, प्रतिवर्ष की दर से कम होते जा रहे हैं."
गिद्ध को धरती के सफाई सहायक के तौर पर जाना जाता है। इसलिए गिद्धों को न केवल एक प्रजाति के तौर पर बचाया जाना ज़रुरी है बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी ज़रुरी है। गिद्ध नहीं रहे तो आवारा कुत्तों से लेकर कई जानवरों तक मरने के बाद सड़ते पड़े रहेंगे और उनकी सफ़ाई करने वाला कोई नहीं होगा और इससे संक्रामक रोगों का ख़तरा बढ़ेगा.
(फोटो गूगल से)
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15 comments:
धीरे धीरे बहुत से पशु पक्षी दिखने बंद ही जायेंगे और हम उनकी तस्वीर देख पायेंगे ..
गिद्धों की बात आपने की। उन्हें बचाने की मुहिम जोरों पर है। हम जानते है कि प्रकृति का यह जमादार प्राणी समाप्ती की ओर तेजी से बढ़ रहा है। इसके अलावा कई ऐसे जीव हैं जो आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं। गोरैया जैसे पक्षी भी अब उतने नहीं रहे। तीतर, बटेर, जुलाहा, जैसे पक्षी हमारे क्षेत्र से तो लगभग गायब ही हो गये। मैंने इनपर कई लेख अपने समाचार-पत्र में लिखे हैं। गिद्धों के विषय में भी विशेष तौर पर लिखा है। मोर भी समाप्ती की ओर हैं। मुझे लगता है कि हम ऐसे पक्षियों को भविष्य में किताबों तक ही सीमित कर लेंगे या इनके बारे में आने वाली जनरेशन को कहानियां सुनाया करंेगे।
आप का धन्यवाद।
-हरमिन्दर सिंह, वृद्धग्राम blog से
निसंदेह चिंता का विषय है !पर भारत में शायद विलुप्त प्राणियो के बारे में गंभीरता से सोचा नही जाता
डिस्कवरी पर देखा था, विज्ञान प्रगति में पढ़ चुके हैं, पर सरकार क्या कर रही है, असम में कहीं एक रक्षण उद्यान बना है!
कोई ७ साल पहले एक दिन हमें ख्याल आया कि बहुत दिन से हमें गिद्ध नही दिखे फ़िर जब जानकारी लेने की कोशिश की तो समझ में आया कि गिद्ध तो वाकई गायब हैं. शायद अब उन्हें वापस अस्तित्व में लाने में प्रकृति सक्षम नही है पहली बार आँखों के आगे से कोई प्रजाति ऐसे विलुप्त हुई
बिलकुल सही कहा आपने। यह कीटनाशकों के दुष्प्रभाव का ज्वलंत उदाहरण है।
बहुत जरूरी विषय उठाया है आप ने. कल सारथी पर यही विषय प्रस्तुत होगा और इस लेख का जिक्र भी होगा.
सस्नेह -- शास्त्री
gidd ki taraha hum natur ke bhitar se kai jivon ko nasht karane me lage huye hain.
वर्षा जी भारत मै तो कई चीजो पर प्रतिबंध है, लेकिन सब हो रहा है,अब इन पक्षियो का, ओर कई जानवर भी भारत मै लुपत हो रहै है, लेकिन कोई कुछ नही कर रहा, बस बडी बडी बाते ओर योजानये बनती है , फ़िर सब ठप्प.
आप ने बहुत ही सही बात उठाई है.
धन्यवाद
गिद्धों का विलुप्त होते जाना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है ! नैसर्गिक रूप से ये धरती की सफाई करते हैं ! इनको बचाने की दिशा में कार्य किए जाने की बहुत आवश्यकता है ! वरना पर्यावरण संतुलन की दिशा में बहुत बड़ी चोट लगेगी ! आपने बहुत सटीक और सामयिक लेख लिखा है इसके लिए बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं !
aise kitni hi bhagwan ki banaye huye sunder jeev lupt hote ja rahe hain...
aapka blog padh nahi paya, kyonki hindi show nahi kar rahi thi...
क्या बात करती हैं आप........गीद्ध इस देश से ख़त्म........नहीं...नहीं...आपकी जानकारी अधूरी है...जरा उसे ठीक कर लें...इस देश में गीद्ध की एक नयी पौध तैयार भी हो चुकी है...पिछले साठ सालों में...जो पहले लोगों को मारते हैं....फ़िर उसका सफाया करवा देते हैं....अगले साठ सालों में ये नए गीद्ध इस पुरे देश का सफाया कर देंगे...सडांध...अरे गंदगी का निशाँ ना बचेगा......हिंट्स: ये गीद्ध अक्सर सफ़ेद कपडों में पाये जाते हैं....ज्यादा नहीं बताउंगा...कुछ रहस्य भी तो जरूरी है ना.....!!
वाह, ब्लॉग का लुक ही बदला हुआ है। काफी अच्छा लग रहा है।
गिद्धों का लुप्त होना सचमुच चिंता का विषय है, जिसका कुछ समाधान ढूंढा जाना चाहिए।
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