यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर, बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
22 June 2008
...और फिर, फिर, एक बार फिर, बार-बार, और फिर, और फिर....ये फिर नहीं हटता। आज एक ख़बर लिख रही थी लखनऊ में दो बच्चियां चाइल्ड लाइन संस्था में लाई गई हैं। इनमें से एक 11 साल की है काजल और दूसरी डेढ़ साल की है तारा। दोनों बच्चियों को उसके पिता ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया था। ये ख़बर, ये कहानी कितली बार लिख चुकी हूं, बस नाम बदल जाते हैं, ख़बर वही रहती है। चार बेटियों का पिता बेटा चाहता था, बेटियां उसके लिए बोझ थी। दो बहनों को उसने उनके मामा के पास छोड़ा और दो को मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर छोड़कर भाग गया। वो गुवाहाटी का रहनेवाला था। मुगलसराय में कुछ दिन तक काजल भीख मांगकर अपना और अपनी बहन का पेट भरती रही। नवादा अपने मामा के पास गई, उसने भी भगा दिया, फिर ये ट्रेन में बैठकर दिल्ली के लिए निकली, किसी ने बताया था कि वहां भीख अच्छी मिलती है, लेकिन ट्रेन लखनऊ की थी। काजल को अपने पिता से छूटने का कोई अफसोस नहीं। वो बिल्कुल नहीं रोती। वो अपनी बहन की मां बन गई है। घर किसी सूरत में वापस नहीं जाना चाहती। ऐसी कितनी काजल हैं। जो जन्म के बाद कभी कूड़े के ढेर पर, कभी मंदिर के सामने तो कभी ट्रेन की पटरी पर पड़ी मिलती हैं। कितनी जन्म से पहले मार दी जाती हैं। सालों से हम ये खबरें देखते-सुनते आ रहे हैं। क्या ये हालात कभी बदलेंगे। शायद ये ब्रेष्ट की ही कविता है- हर चीज बदलती है, अपनी हर आखिरी सांस के साथ, तुम एक ताज़ा शुरुआत कर सकते हो।
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2 comments:
हर चीज बदलती है,
अपनी हर आखिरी सांस के साथ,
तुम एक ताज़ा शुरुआत कर सकते हो।
-बहुत भरोसा देती हैं यह पंक्तियां वरना तो ऐसे हालात हर तरफ-इन्सान खुद इन्सानों की करनी देख सन्न है.
aapne bilkul sahi likha hai.me aap se sahamat hu.
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