16 November 2010




रिहाई मुबारक
कुछ लोग पर्वत से होते हैं, अडिग, निर्भय। आंग सांग सू ची, मणिपुर की इरोम शर्मिला...इन नामों को सुनकर सहम भी जाती हूं,फक्र भी होता है, प्रेरणा भी मिलती है। ये जीतेजागते लोग दरअसल ज़िंदगी हैं। इनकी नज़रबंदी, इनकी भूख हड़ताल, ज़िंदगी की असली जद्दोजहद है, कहां हम थोड़ी-थोड़ी बातों के लिए घबराते हैं,अपनी छोटी-छोटी मुश्किलों के पहाड़ में दबे रह जाते हैं। ये हिम्मत देती हैं, हमें, हमारे हौसले को।

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जी हाँ!
हमको भी हौसला मिल गया आपकी पोस्ट से!

Smart Indian said...

आंग सान सू ची को मुक्ति की बधाई! स्वतंत्रता के लिये हर दुख सहने और जान देने को तैयार बैठे ऐसे लोग समाज के लिये आदर्श हैं!

दिगम्बर नासवा said...

आंग सान सू ची को मुक्ति की बधाई ... ऐसे लोगों से बहुत प्रेरणा मिलती है ..