23 November 2010

गुड-गुड, ओके-ओके


मुस्कान ऐसी हो
मुस्कान ऐसी कि होठों को चीरकर कानों तक भाग जाए, दांत 32 की जगह(अगर पूरे 32 होते हों) 64 होने को बेक़रार हों।
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रीढ़ कैसी हो
रीढ़ जिसकी पांवों के साथ 90 डिग्री का कोण मौका भांपकर तत्काल बनाए। क्षण के सौवें हिस्से में प्रकाश की गति से तेज़ ये कोण बनता और बिगड़ता हो।
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दिमाग़ हो तो ऐसा
सत्तासीन और सत्तासीन के क़रीब रहनेवाले(चाहे चतुर्थश्रेणी में आनेवाले चपरासी हों)से पूरी संजीदगी के साथ वही बात करें कि दिन को रात कहें तो रात ही लगे, चाहे अपने घर की लाइटें बुझानी पड़े। मस्तिष्क जिसका कोई प्रतिक्रिया न देता हो, सिर्फ वही करता हो जो कहा जाता हो। ऐसा नेचुरल प्रॉसेस के तहत हो, अभिनय नहीं।
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उपस्थिति
तेज़ आवाज़, भौकाल करने की जबरदस्त क्षमता कि एक ही बार में उपस्थिति दर्ज हो जाए, बाद में चाहे ग़ुमशुदा-ग़ुमशुदा।
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नाराज़गी
इसमें भी कुछ बात होनी चाहिए कि लोग पूरी सहानुभूति के साथ बोलें अरे वो नाराज़ है, आपको मनाने को लोग आतुर हों, इस अभिनय में ब्रेक न लें, लगातार रोनी सूरत बनाए रखें।
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ज़ुबान
हां, जी, यस, ओके, ठीक, सही, वाह, कमाल, बढ़िया, बिलकुल जैसे शब्द बोलने की ज़ुबान को आदत हो, इसके विलोम आते ही न हों।
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कान
अबे, बदतमीज़, बेवकूफ, गधा, काट डालूंगा, मार डालूंगा, ऐसा कैसे, कैसे-वैसे-जैसे-जैसे, ये करो, वो करो, ये न करो, वो न करो, समझे, नहीं समझे, समझा दूंगा, ये करो, वो करो....जैसी बातें कान ठीक-ठीक सुनना जानते हों।

यदि ये योग्यताएं आप रखते हैं तो किसी भी नौकरी में तरक्की तय है। चाहे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके डॉक्टरी करने निकले हों या फिर डाटा एंट्री ऑपरेटर के जैसे पत्रकारिता करने निकले हों।

1 comment:

सोतड़ू said...

बॉस की बातों पर हंसना भी एक महत्वपूर्ण कला है... कई बार भाई लोग इतना हंस देते हैं कि खुद बॉस को ही समझ नहीं आता कि ऐसा क्या चुटकुला सुना दिया...

पर चुपचाप अपना काम करके चले जाने, खड़े होकर गाली देने से भी किसका फ़ायदा