यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर,
बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है
तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
27 July 2008
तस्वीरें कहती हैं, शब्दों से कुछ ज़्यादा
(ये तस्वीर मुझे ई-मेल पर मिली, अच्छी लगी, इसलिए ब्लॉग पर भी चिपका रही हूं)
11 comments:
बहुत खूब
बहुत बढिया तस्वीर है।तस्वीर बहुत कुछ कह रही है।
:)
साधुवाद! साधुवाद!
ये तो संत है..
सही है :)
:) :) :)
इसमे एक गहरा व्यंग्य भी छिपा है.
ये तस्वीर नहीं, तस्वीरें हैं
इनको निगाह की हद से परे तलाश कीजिए...
ये तस्वीर नहीं, तस्वीरें हैं
इनको निगाह की हद से परे तलाश कीजिए
हुज़ूर ये तस्वीर नहीं, तस्वीरें हैं
इनको निगाह की हद से परे तलाश कीजिए
ये तस्वीर नहीं, तस्वीरें हैं
इनको निगाह की हद से परे तलाश कीजिए...
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