यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर, बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
09 December 2008
क्या हम खरे हैं ?
क्या हम चेकिंग के लिए लगी लंबी कतार देखकर झल्लाते नहीं। इससे बचने के उपाय नहीं ढूंढ़ते?
क्या मॉल-सिनेमाहॉल जैसी भीड़भाड़वाली जगहों पर सिक्योरिटी वाले महज दिखावे की चेकिंग नहीं करते। क्या हम उसकी शिकायत करते हैं?
क्या हम अपने ईर्द-गिर्द घट रही संदिग्ध चीजों को बड़ी आसानी से नज़रअंदाज़ कर आगे नहीं बढ़ जाते?
क्या हम ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और ऐसे तमाम काम करवाने के लिए उपर से पैसा नहीं देते?
क्या हम सड़क पर कूड़ना नहीं फैलाते?
क्या हम रेड लाइट क्रॉस नहीं करते?
क्या हम कार की सीट बेल्ट लगाकर चलते हैं?
क्या हम बाइक पर हेलमेट लगाकर चलते हैं?
क्या हम अपनी सड़कों को गंदा नहीं करते?
क्या हम जो बोलते हैं, लिखते हैं, भाषणबाज़ी करते हैं, असल ज़िंदगी में हम उतने ही खरे हैं?
ऐसे बहुत से सवाल हैं जो हमें खुद से भी पूछने चाहिए। आतंकी हमलों से लेकर सड़कें गंदी करने तक में हम शामिल हैं।
हमारी कमज़ोरियां ही दुश्मन की ताक़त हैं। जब तक हम नहीं सुधरेंगे, देश कैसे सुधरेगा?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
19 comments:
नही जी हम अरोडा है. आप का पता नही वो शर्मा है ये वर्मा है . वो खान है ये खरे शायद उत्तर प्रदेश मे बरेली और इसके आस पास पाये जाते है
हमारी कमज़ोरियां ही दुश्मन की ताक़त हैं। जब तक हम नहीं सुधरेंगे, देश कैसे सुधरेगा?
पतंगे को जलने का शोंक क्यों है
बिल्कुल खरी बात ....हम तो इस हफ्ते ही मूंगफली खाते पकड़े गए थे ...खैर मजाक एक तरफ़ .संजीदा बात ओर गहरे आत्मनिरीक्षण की जरुरत है
(१)झल्लाते है ,ढूंढते हैं (२)नहीं सही चेकिंग करते हैं मेटल डिटेक्टर से निकालते हाँ कार की चेकिंग नहीं करते जो ताल मंज़र में राखी जाती हैं (३)हाँ नजर अंदाज़ कर जाते हैं (४)नहीं देते (५) नहीं फैलाते (६)क्रोस नहीं करते (७) हाँ बेल्ट लगा कर नहीं चलते ( देखिये में उत्तर दे रहा हूँ और अगर कोई मुझसे कहे साले तेरा बाप भी कभी कार में बैठा है तो ?)(८)हेलमेट लगा कर नहीं चलते (९) जनरली तो नहीं करते कोई पान खिलादे तो बात अलग है (१०)नहीं मन में कुछ और बाहर कुछ और / सच है हमें ही बदलना चाहिए /हवन यज्य करने के बाद हम नारे लगते तो है ""हम बद्लेगे युग बदलेगा ,हम सुधरेंगे युग सुधरेगा "" पूछा भइया सुधर क्यों नहीं रहे बोले पहले पड़ोसी सुधर जाए हम तो कभी भी सुधर जायेंगे / एक से पूछा भइया तुम्हारे पड़ोसी तो बड़े शांत प्रकृति के है सज्जन है फिर तुमने तुम्हारे घर में ये दुनाली क्यों टांग राखी है ,बोले भइया याही की वजह से शांत और सज्जन हैं
वर्षा जी...
आप कह तो सही रही हैं, लेकिन ऐसे भी लोग यहाँ हैं जो इस देश को साफ रखना चाहते हैं, पर उनकी आवाज को दबा दिया जाता है, क्योंकि शासन ही जब गुंडों के हांथो में हैं तो कोई क्या करे....?
और दूसरा ये भी है की इस देश को सुधारना, साफ करना कोन चाहता है... सीधी सी बात है की की सफाई करने में अपने हाथ गंदे कोन करे..?
आते-जाते कितनी ही ऐसी घटनाये देखने को मिलती है, जिससे अपने भारत का वो चेहरा जो हम चाहते हैं, लगता है की सीने में लेकर ही मर जायेंगे, ये कभी साकार नहीं होगा...
लेकिन फ़िर भी हम मरते दम तक कोशिश करते रहेंगे...वैसे भी हमने सुना है की कोशिश करने वालों की कभी हर नहीं होती, जब आजादी मिल गई तो सुंदर भारत भी मिलेगा...
---मीत
सब एकसे नहीं होते..इसलिए हम चीज़ों को जैनरेलाइज़ नहीं कर सकते....लेकिन हां,ज्यादातर ऐसा ही होता है...हम सब बचना चाहते हैं...सब अपना काम पहले करवाना चाहते हैं....चाहें उसके लिए रसूख का इस्तेमाल हो या फिर पैसे का...
वर्षा जी मे शान से कहता हू मै इन मै नही , मै अपने देश के कानुन का पालन करता हूं, कई बार भीड के कारण दिल्ली एयर पोर्ट पर मुझे या बच्चो को चेक नही करते तो मै कहता हूं , भाई हमे भी चेक करो?? सामने वाला हेरान परेशान हो जाता है, मंदिर मै कई बार ऎसा हुआ है, कि कोई जान पहचान वाला आया ओर हमे बोला अरे आप कहां लाईन मे खडे है आओ जल्दी से हम आप को दर्शन करवा देते है, तो मै हमेशा अपने से आगे बाले को भेज देता हूं, जी मै सभी नियमो का पालन करता हू.
धन्यवाद
पंगेबाज़ तो पंगेबाज़ी कर रहे हैं, तनु की बात ठीक है मैं इसे जनरलाइज़ नहीं कर सकती और राज भाटिया जी आप तो आदर्श हैं, दरअसल ये तो चंद सवाल हैं जो मेरे ज़हन में आए और मैंने लिख दिये, बात ये है कि हम अपने ईर्द-गिर्द की तमाम चीजों को इग्नोर करते रहते हैं, कई बार तो लुत्फ़ भी उठाते हैं, मुझे लगता है गंदी सड़कों से लेकर आतंकवाद तक की चीजें हमारी ढिलाई का नतीजा हैं। हम सिर्फ नेता-पुलिस को गालियां देकर तो नहीं रह सकते और मैं अपने ईर्द-गिर्द तमाम लोगों को देखती हूं, उनमें कहीं-कहीं मैं खुद भी शामिल हूं, जब हम बड़े मज़ेदार तरीके से अपनी ज़िम्मेदारियों की धज्जियां उड़ाते हैं, कुछ व्यवस्था की गलती है, बहुत कुछ हमारी भी।
bhai kisi ki main kya jaanu, mai to sab follow karata hoon!
सच तो यही है कि भारत के "अधिकांश" लोग पाखण्ड से भरे हुए हैं, उन्हें कन्या भोज तो करवाना होता है, लेकिन खुद तीन बार अबॉर्शन करवा चुके होते हैं, जब तक सिपाही न खड़ा हो रेड लाईट क्रास करना उनका शगल है, रिश्वतखोरी, आम नागरिक जीवन में अनुशासनहीनता, खुद गद्दार हों लेकिन दूसरों में नैतिकता खोजते लोग आतंकवाद से नहीं लड़ सकते, हम हर बात सरकार पर ढोलने के आदी हो चुके हैं… और जब कोई कुछ करने को आगे बढ़ता भी है तो उसकी टांग खींचकर उसे गिराने में लग जाते हैं… कई बार लगता है कि क्या हम आजादी के काबिल हैं भी?
bahut khub hai.
आपको ढेरो बधाई इसके लिए....
अर्श
hamari kamjoriya hi dushman ki taak par hain..
apni kamjoriyaan sudharne ke liye apne upar dhyaan dena jarori hai desh ke upar nahi desh khud ba khud sambhal jayega agar hamara kandha majbut hoga to....
अक्षय-मन
भाई सांप सारी दुनियां मे टेढा टेढा चलता है पर अपने घर (बिल्)मे सीधा होकर घुसता है ! अब ये ब्लाग जगत भी अपना घर ही है सो सही सही बता देते है कि आपकी लिस्ट मे सिर्फ़ २०% ही ऐसे मुद्दे हैं जिनकी हम धज्जियां नही ऊडा पाते बाकी तो किसी को भी हम नही मानते !
राम राम !
बिल्कुल वाजिब बात !
बिल्कुल सही कहा आपने !
हम हिदुस्तानी शायद हमेशा ऐसे ही रहेंगे !
यहाँ पर लोग सिर्फ एक ही जुबान समझने
के आदी हो चुके हैं ! ट्रैफिक जाम स्वयं करते हैं लेकिन जैसे ही पुलिस डंडे बरसाना शुरू करती है सब सही होने लगता है ! सड़कों पर अतिक्रमण हम स्वयं करते हैं पर नगर निगम का दस्ता देख कर डर के मारे अपना बोरिया बिस्तर समेटने लगते हैं ! किरायेदार का वैरीफिकेशन तक हम नहीं कराते ! ब्लैक में टिकट खरीदने को हम ख़ुद उतावले रहते हैं ! अपने घर का कूड़ा हम जगह फेंकते हैं और गालियाँ सरकार को देते हैं !
आलोचना करना बेहद आसान होता है ! हम हिन्दुस्तानियों का प्रिय काम है दूसरों की निंदा करना ! इस तरह अपनी कमियों को छुपाने का असफल प्रयास करते हैं !
और मजे की बात यह है कि जो भी नियमानुसार काम करता है वो बकलोल कहलाता है !
ऐसा ही एक पागल ... बकलोल मैं भी हूँ !
वर्षा जी बिलकुल सही सवाल हैं। जानवर भी जिस जगह बैठता है उस जगह को साफ कर लेता है और हम लोग जगह-जगह गंदा करते हैं। दूसरों को नसीहत देते हैं और खुद उसी काम से कतराते हैं।
वर्षाजी, बात तो आपने सही कही है लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है। अपनी कमजोरियों को सुधारने की बेशक जरूरत है लेकिन हम जो बनते हैं उसमें सिर्फ हमारा हाथ होने को मानना अधूरा नजरिया होगा। हम अपने परिवेश से भी निर्मित होते हैं। परिवेश समाज के चलाने के ढंग से निर्मित होता है। और उसके बारे में आप जानती हैं कि यह ढंग लोगों के अच्छे जीवन से किस तरह दूर होता चला गया है। खैर आपने मुद्दा सही उठाया है।
मुन्तज़र अल जैदी के माफी मांगने की खबरों की सच्चाई खोजने की कोशिश कर रहा हूं। वैसे मुझे इस खबर के पीछे कोई और वजह लग रही है खैर....
sahi baat hai. janch karne par yahi samne aata hai ki thoda hi sahi hamme khot to hai hi or ye v sahi ha ki hamari kamjori hi dushman ki takat banti hai.
Post a Comment