अमां यार जबसे हम तुम्हारे फोन का इंतज़ार कर रिये हैं। चलना है तो बताइये।
अरे वो हम टीवी देखने बैठे थे, तभी ख़बर आ गई की दिल्ली में फिर बम फूट रहे हैं, बस वही देखने लग गए।
अजी छोड़िये। ये बम-वम फूटे तो फूटे। लड़के के एडमिशन के लिए यूनिवर्सिटी के एक बाबू जी से बात करनी है। आप तो जानते ही हैं बातचीत में हम उतने चपल हैं नहीं। इसीलिए आपको बार-बार पूछ रहे हैं। तो क्या कहते हैं आप चलेंगे क्या।
हां चलते हैं, दरअसल वही ख़बरिया कि कोई तो कह रहा है कि 14-15 लोग मर गए, कोई चैनल कह रहा है कि 24-25।
अरे अब आप इन चैनलों के चक्कर में न पड़ें और न इन धमाकों के। जितना इनसे जुड़ेंगे उतना ही ये सतावेंगे। अभी 14 कह रहे हैं दस मिनट बाद 34 भी कह सकते हैं और फिर खुद ही उसमें से दस घटा के 24 पर ले आएंगे, ये सब गोलमोल करते रहते हैं और धमाकों का क्या है, आज यहां बम फूटा है कल वहां फूटेगा। आप बस तैयार हो जाइये हम आ रहे हैं।
हां बस थोड़ी देर में चलते हैं ये ख़बर देख लें ज़रा।
अरे अब आप भी। पहले साल दो साल में धमाके होते थे तो ज़रा हम भी देख लेते थे, अब तो रोज़-रोज़ बम फोड़े जा रहे हैं, अब किसके पास टाइम है सारा वक़्त टीवी से चिपके रहने का। या फिर ये सोचने का कि कहीं हम मारे जाते तो। जब मरेंगे तब मरेंगे।
हां अब देखिये बम एक जगह फूट रहा है अफवाहें सौ जगह आ रही हैं।
तभी तो कह रिये हैं, बम-शम फटना तो अब रोज की बात हो गई है।
हां चलिए हम निकलते हैं, आप बस हमारी वाली चाय तैयार रखिएगा।
ये हुई न बात।
11 comments:
sach hai,
देश के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय यही है कि आतंकवादी जैसे जैसे सक्रिय हो रहे हैं, आम लोगों की संवेदनशीलता घटती जा रही है। लोग आतंकी घटनाओं को भी रुटीन के हादसे मानने लगे हैं। हमें जागरूकता का प्रयास निरंतर जारी रखना है....
हमेँ तो ये खबरेँ सुन सुनकर बहुत चिँता लगी रहती है वर्षा जी :-(
बहुत स्नेह्,
- लावण्या
सही लिखा है आपने ..कुछ ऐसा ही मैंने अभी हाल में हुए में बम ब्लास्ट में एक ऑटो वाले को जल्दी चलने पर कहा तो सुना ..कि बम तो अब फटते ही रहते हैं ..कौन सुने इस किस्से को बार बार आप बताओ कहाँ जाना है आपने ......संवेदन शीलता खत्म होती जा रही है ..जो चिंता का विषय है
शीलता खत्म होती जा रही है ..aisa nahi ki zindili badh gayi ho
हम मूलत: असंवेदनशील हैं। जब तक कोई अपना नहीं मरता हमें दर्द नहीं होता। ये आज नहीं हुआ शायद शुरू से है। इसीलिए मदर टेरेसा महान बनती हैं
रिमोट बदल रहा है सवेदनशीलता
ये हुई न बात।
पैने व्यंग से भरपूर आपका आलेख पढा बधाई स्वीकारें समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
कम संवेदनशीलता और अति संवेदनशीलता दोनों ही बुरी होती हैं. आपने अच्छा पहलू उठाया है
काश की अमन की वर्षा हो...
और सारा वतन भीग जाये...
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