एक एसएमएस टहलता-टहलता मेरे मोबाइल के इनबॉक्स में भी आया। आप भी पढ़ें-
" दिल्ली पुलिस का एक जाबांज़ इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा आतंकवादियों से लड़ते हुए चार गोलियां सीने पर खाकर शहीद हुए। मिला क्या ? पांच लाख रुपये।
युवराज ने छे छक्के मारे तो एक करोड़ मिला
बीजिंग में जीते खिलाड़ियों ने भी लाखों नहीं बल्कि करोड़ से ज्यादा कमाए
(बिंद्रा-4 करोड़ से ज्यादा, सुशील दो करोड़ से ज्यादा, विजेंद्र को लाखों रुपये इनाम मिले, साइना को क्वालीफाई करने पर ही 25 लाख रूपये इनाम मिले)
डेंगू से बीमार बेटे को छोड़ कर ड्यूटी पर शहीद हो जाए तो सिर्फ 5 लाख
(सुधार: 5लाख रुपये उत्तराखंड सरकार ने और दिल्ली सरकार ने 11लाख रुपये दिए(इसमें उनकी ग्रेच्युटी वगैरा शामिल है))
धिक्कार है "
16 comments:
वतन पे मरनेवालों का यही बाकी निशां होगा..
AB SMS bhejne walon kee bhee apnee leela hai.
desh par marane ke liye vigyaapan jo nahi milate.
ऐसे मे कौन शहीद होना चाहेगा देश के लिये।सही लिखा आपने।मैने भी इस एसएमएस पर एक पोस्ट लिखी है फ़ुर्सत मिले तो पढियेगा
इतने पर भी गनीमत नहीं
पत्रकार भाई तो इन्स्पेक्टर शर्मा की शहादत पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं!
इनके अनुसार तो ये एक फर्जी इन्काउन्टर था!
क्योंकि इसके लिये विज्ञापन मिल जाते हैं
वर्षा जी!
आपने बहुत अच्छी पोस्ट डाली है! अशोक जी बिलकुल सही कह रहे हैं, और फिर स्व मोहन जी की शहादत के सामने ये ५ लाख कुछ भी नहीं हैं...
क्या इस तरह के sms से होने वाली कमाई और वो किनकी जेबों में जा रही है इसपर कभी सोचा गया है?
वैसे सिर्फ़ धिक्कार कह देना आसान होता है और कुछ सार्थक करना कठिन
रोशन जी सार्थक करने से पहले सोचना होता है और इसके लिए देखना भी, सेना और पुलिस में आने के सपने कितने बच्चे पालते हैं? जबकि फिल्म और क्रिकेट में हर दूसरा बच्चा दिलचस्पी भी रखता है और आना भी चाहता है।
फिर एसएमएस की कमाई का हिसाब रखना हमारा काम नहीं है भाई।
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है।
माफ कीजिए, हमारे यहाँ की ऐसी ही सरकार है।
बिल्कुल दुरुस्त बात !
सचमुच "धिक्कार है".
कम शब्दों में बहुत ज़ोरदार व्यंग्य =इसी लिए किसी ने गागर में सागर वाक्य का प्रयोग किया होगा तथा सतसई के बारें में कहा था ज्यों नाविक के तीर ,देखत में छोटे लगें घाव करें गंभीर /
sirf itna hu kahugi.. Dhikaar hai........
आपका मेरे ब्लॉग पर पधारना मेरा सौभाग्य है और उस पर कुछ पसंद आ जाना आपका सौभाग्य है
हमारे इस सौभाग्य के सिलसिले को कायम रखे दर्शन देते रहे
आपका सार्थक आलेख पढा अच्छा लगा यह मेरा सौभाग्य है
आप भी अजीब बातें कर रहीं हैं. आपको हम राजनेताओं की नज़र की तो पहचान ही नही.
शहादत कोई तिज़ारत तो नहीं. क्रिकेट तो है भाई.हमने उनको याने उस शहीद को(-नाम याद नहीं आ रहा है, काम बहुत है)पैसे इसलिये दिये है कि चलन है, कोई और दे देगा तो हम से जनता पूछेगी तो क्या जवाब देंगे ?(चुनाव पास में ही हैं बहनजी).
आप तो रजाई में मुंह ढक कर सो जाईये, हमें अपना काम करने दिजीये. आखिर वोट बॆंक का खयाल तो रखना ही पडेगा ना? आप अफ़ज़ल की फ़ांसी को रो रहे है? हमें उसकी मां के आंसू याद आ रहे है. क्या कहा - भारत माता ? ये कौन है भैया?
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