यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर,
बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है
तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
07 March 2009
औरत की ज़िन्दगी : रघुवीर सहाय
कई कोठरियाँ थीं कतार में उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा उसके बचपन से जवानी तक की कथा
बड़े दुख को सामने लाती छोटी सी कविता। रघुवीर सहाय की खासियत शायद यही है कि वे वृथा भावुकता, मेलोड्रामा और रेहोटरिक से बचते हुए यथार्थ को बेहद असरदार ढंग से सामने रख देते हैं।
7 comments:
बड़े दुख को सामने लाती छोटी सी कविता। रघुवीर सहाय की खासियत शायद यही है कि वे वृथा भावुकता, मेलोड्रामा और रेहोटरिक से बचते हुए यथार्थ को बेहद असरदार ढंग से सामने रख देते हैं।
कम शब्दों मे गहरी बात.
रामराम.
इस छोटी सी कविता में छुपे मर्म को शब्दों में बयां कर पाना कठिन है.
... कथा हमारे निकम्मेपन की और प्रशासन के क्लैव्य की.
वर्षा जी आप ने एक सच अपनी इस कविता मै उतार दिया कलम से.
धन्यवाद
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
होली की बधाई एवम घणी रामराम.
चंद शब्द गहरी बात
मीत
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