07 March 2009

औरत की ज़िन्दगी : रघुवीर सहाय


कई कोठरियाँ थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गई
थोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया


उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथा
उसके बचपन से जवानी तक की कथा

7 comments:

Ek ziddi dhun said...

बड़े दुख को सामने लाती छोटी सी कविता। रघुवीर सहाय की खासियत शायद यही है कि वे वृथा भावुकता, मेलोड्रामा और रेहोटरिक से बचते हुए यथार्थ को बेहद असरदार ढंग से सामने रख देते हैं।

ताऊ रामपुरिया said...

कम शब्दों मे गहरी बात.

रामराम.

Satish Chandra Satyarthi said...

इस छोटी सी कविता में छुपे मर्म को शब्दों में बयां कर पाना कठिन है.

Smart Indian said...

... कथा हमारे निकम्मेपन की और प्रशासन के क्लैव्य की.

राज भाटिय़ा said...

वर्षा जी आप ने एक सच अपनी इस कविता मै उतार दिया कलम से.
धन्यवाद


आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

ताऊ रामपुरिया said...

होली की बधाई एवम घणी रामराम.

मीत said...

चंद शब्द गहरी बात
मीत