लेटर फ्रॉम दि प्रिसाइडिंग एंजेल
स्वर्ग से प्रध्रान फरिश्ता एक कोयला व्यापारी को पत्र लिखता है- हम सार्वजनिक प्रार्थना, जैसे चर्च की, को कम नंबर देते हैं। अधिक नंबर देते हैं मन की गुप्त प्रार्थना को। तुमने चर्च में प्रार्थना की प्रभु, सब लोग सुखी हों पर घर पर तुमने मन से प्रार्थना की, कि प्रभु मेरे प्रतिद्वंदी कोयला व्यापारी का जहाज़ आ रहा है। तू तूफान उठा दे जिससे वो डूब जाए। तुम्हें सूचित किया जाता है कि तूफान अभी स्टॉक में नहीं है। फिर भी हम किसी तरह उसका कुछ नुकसान करेंगे।
तुमने चर्च की प्रार्थना में तो कहा कि प्रभु सब मनुष्य सुखी हों। पर घर में मन में कहा- मेरा यह पड़ोसी दुष्ट है। मुझे तंग करता है, इसे मौत दे दें। तुम्हें सूचित किया जाता है कि मौत सबसे बड़ी सज़ा है। वो उसे नहीं दी जा सकती। तुम्हारे संतोष के लिए हम उसे निमोनिया देते हैं।
(हरिशंकर परसाई की किताब आवारा भीड़ के खतरे से ये टुकड़ा उठाया है। अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन के इस व्यंग का उन्होंने ज़िक्र किया। ऑफिस की एक घटना में इस टुकड़े की याद हो आई थी।)
6 comments:
यही तो आज का सच है वर्षा जी!
अच्छी रचना से परिचय कराने के लिए धन्यवाद...
जारी रहे!
परसाई जी के लेखन के तो हम कायल हैं.
bahut sahi, vyangya me parsai ji ka to javab nahi.
aapne poocha tha image kaise add kar sakte hain
खूब कहा!
बहुत बढिया!!
varshaji
achcha likha hai aapney.
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