15 September 2008

लेटर फ्रॉम दि प्रिसाइडिंग एंजेल

लेटर फ्रॉम दि प्रिसाइडिंग एंजेल
स्वर्ग से प्रध्रान फरिश्ता एक कोयला व्यापारी को पत्र लिखता है- हम सार्वजनिक प्रार्थना, जैसे चर्च की, को कम नंबर देते हैं। अधिक नंबर देते हैं मन की गुप्त प्रार्थना को। तुमने चर्च में प्रार्थना की प्रभु, सब लोग सुखी हों पर घर पर तुमने मन से प्रार्थना की, कि प्रभु मेरे प्रतिद्वंदी कोयला व्यापारी का जहाज़ आ रहा है। तू तूफान उठा दे जिससे वो डूब जाए। तुम्हें सूचित किया जाता है कि तूफान अभी स्टॉक में नहीं है। फिर भी हम किसी तरह उसका कुछ नुकसान करेंगे।
तुमने चर्च की प्रार्थना में तो कहा कि प्रभु सब मनुष्य सुखी हों। पर घर में मन में कहा- मेरा यह पड़ोसी दुष्ट है। मुझे तंग करता है, इसे मौत दे दें। तुम्हें सूचित किया जाता है कि मौत सबसे बड़ी सज़ा है। वो उसे नहीं दी जा सकती। तुम्हारे संतोष के लिए हम उसे निमोनिया देते हैं।
(हरिशंकर परसाई की किताब आवारा भीड़ के खतरे से ये टुकड़ा उठाया है। अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन के इस व्यंग का उन्होंने ज़िक्र किया। ऑफिस की एक घटना में इस टुकड़े की याद हो आई थी।)

6 comments:

मीत said...

यही तो आज का सच है वर्षा जी!
अच्छी रचना से परिचय कराने के लिए धन्यवाद...
जारी रहे!

Udan Tashtari said...

परसाई जी के लेखन के तो हम कायल हैं.

Tarun said...

bahut sahi, vyangya me parsai ji ka to javab nahi.

aapne poocha tha image kaise add kar sakte hain

Smart Indian said...

खूब कहा!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

varshaji
achcha likha hai aapney.