04 May 2018

क्यों खायी तीसरी कसम हीरामन


 (दैनिक ट्रिब्यून के क्लासिक किरदार कॉलम में प्रकाशित)
फणिश्वरनाथ रेणु की कहानी तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम को पढ़ते हुए ऐसा कोई होगा जो हीरामन की सादगी और भोलेपन का कायल हो जाए। क्या ऐसे लोग भी होते हैं ज़माने में। इतनी सच्चाई तो हमें सिनेमाई ही लगती है।  रेणु की इस कहानी के कैनवस में लोकरंग बिखरे हुए हैं। कहानी पढते हुए दो बैलों के खनक कर चलने की आवाज़ कानों में गूंजने लगती है। लंबे हट्टे कट्टे दो सफेद बैल। कहानी में मेले की गूंज सुनायी पड़ती है। वे मेले जो हमारे बचपने की स्मृतियों का हिस्सा भर रह गए हैं। अब कहां वो मेले ठेले, मेले के वे झूले, वे खिलौनेवाले, गुब्बारेवाला, जलेबियां।
कहानी का मुख्य पात्र हीरामन अपने सफर के अनुभवों से दो कसमें तो खा चुका है। एक तो चोर बाज़ारी का माल लादने का और दूसरा बांस लादने का। इन दो कसमों तक तो पाठक दूर से हीरामन की बैलगाड़ी को छम छम करते आगे बढ़ते हुए देखते हैं। लेकिन जैसे ही कहानी की नायिका हीराबाई सवारी बनकर हीरामन की गाड़ी में बैठती है, पाठक भी इसके साथ ही हीरामन की बैलगाड़ी पर सवार हो जाते हैं। हीराबाई जैसी सवारी का आभास पाकर हीरामन के मन में गुदगुदी होनी शुरू होती है, उसकी गाड़ी मह-मह महक उठती है, घड़ी-घड़ी चंपा के फूल खिलने लगते हैं, पाठकों के मन में भी चंपा के फूल खिलने शुरू हो जाते हैं। पाठक डरते भी हैं कि क्या होगी वो तीसरी कसम, जिस पर मारा गया हमारा गुलफाम, हमारा हीरामन। जब चांदनी के एक टुकड़े में हमारा गाड़ीवान अपनी सवारी की एक झलक पाता है, उसे सब कुछ रहस्यमयी लगने लगता है तो क्या पाठक इस एहसास से बचे रह पाते हैं। नहीं।

हीरामन की बैलगाड़ी अपने सफ़र पर है और उसके साथ हम भी उन तमाम रास्तों को पार करते हैं, जिसमें कभी हीरामन बैलों को फटकार लगता है, तो कभी वो उनसे चलते रहने की गुहार लगाता है। रास्ते के लोग हीरामन से सवारी के बारे में पूछते हैं तो वह बेहद गंभीरता के साथ राहगीरों को टाल देता है, या किसी को भनक नहीं लगने देता कि उसकी गाड़ी में कोई लड़की सवार है। इतना समझदार है हमारा अनपढ गाड़ीवान। इस बात पर हम गर्व भी महसूस करते हैं। जिसकी दुनिया सिर्फ उसके बैलों तक सीमित है, उसे इतना पता है कि एक स्त्री से कैसे बात करनी है, वो बीड़ी सुलगाता है तो पहले पूछ लेता है कि आपको इससे गंध तो नहीं लगेगी न। अब तो दोस्ती हो गई है हमारे गाड़ीवान और उसकी सवारी के बीच। हीराबाई ने उसे मीता कहकर पुकारने की इजाजत भी ले ली है। हीराबाई के कुरते पर जो फूल छपे हैं, हीरामन को उनकी भी खूब महक आती है। इस पूरे सफ़र में वो उसकी गाड़ी में चंपा के फूलों की गंध रह रह कर उठती रहती है और वो अंगोछे से अपनी पीठ झाड़ता है, जब उसे झुरझुरी सी महसूस होती है।

इस कहानी में प्रवेश कर आज के माहौल से इसकी तुलना करें तो। सड़कों पर ट्रैफिक का शोर और गाड़ियों के तेज़ हॉर्न की आवाज़। चंपा के फूल क्या खिलेंगे, पेट्रोल-डीजल की गंध मिली हुई हवा, और इस सब से बचने के लिए बस आंखों को छोड़, सिर-मुंह-कान सब कस कर बांधे हुए हमारे आज के नायक-नायिका ही दिखाई देंगे।

खैर हम कहानी में वापस चलते हैं। हीरामन के मन में सतरंगा छाता धीरे-धीरे खिल रहा है। अजनबियों को देख वो टप्पर के परदे को गिरा देता है। चलते-चलते अचानक गाने लग जाता है। हीराबाई उसे देख कर मुस्कुराती है और वह फिर शरमा जाता है। कहानी में समय का पता तब चलता है जब सूरज को दो बांस ऊपर चढ़ जाता है या फिर दो बांस नीचे सरक जाता है। इस तरह समय की पड़ताल भी बडी अच्छी लगती है। हीरामन परदे के छेद से अपनी सवारी को देख लेता है और फिर गुनगुनाने लगता है। हीराबाई को महुआ घटवारिन का किस्सा सुनाते-सुनाते वो खुद सदमें में सा जाता है। हीराबाई को भी उस पर पूरा भरोसा हो चला है और वह पूरे इत्मीनान के साथ इस सफ़र पर है। और क्या ही लगता है जब हमारा ये भोला भाला नायक बात बात पर इस्स बोलता है। बॉलीवुड की हिरोइन ऐश्वर्या राय अपने पूरे करियर में ऐसे इस्स्स बोल पायी होगी जैसे हमारा हीरामन लजाने पर इस्स्स-इस्स्स करता है।

अपनी मंजिल पर पहुंचकर गाड़ीवान खुश होते हैं और हीरामन का ह्रदय भारी हो जाता है। अब हीराबाई उसकी सवारी नहीं रही, उस मेले की शान है, सब उसी के बारे में बात कर रहे हैं। हीरामन और उसके दोस्तों को भी उसने मेले में आने का पास दिलवा दिया। पूरे सफ़र के दौरान अजब सी खुशबू में लरजता हुआ हीरामन अपनी पूरी कमाई संभालने के लिए हीराबाई को दे देता है, उसे डर है कि कहीं मेले में कोई उसकी पॉकेट मार ले। जिस थैली में हीराबाई ने उसे पैसे पकड़ाए थे, वही थैली अब हीराबाई के पास उसकी अमानत है। इसी थैली की वजह से वो आखिरी बार हीराबाई से मिल पाता है। मेला छोड़कर जाते हुए रेलवे स्टेशन पर वो हीरामन का इंतज़ार करती है। थैली उसके सुपुर्द कर नायिका की जान में जान आती है। आखिर एक गाड़ीवाले की गाढ़ी कमाई जो थी। हमारी नायिका भी बेहद ईमानदार है। अब भी अगर वो ट्रेन में बैठी तो ये गाड़ी तो छूट जाएगी, हीराबाई चली ही जाती है। हीरामन उसे ट्रेन के गुजरने के आखिरी दृश्य तक देखता रह जाता है। पाठकों के मन में भी एक आह भरी इस्स्स निकलती है। बहुत तपड़ कर हीरामन अपनी तीसरी कसम खाता है कि अब कभी किसी लड़की को अपनी गाड़ी में नहीं बिठाएगा। हमारा नायक बड़े भारी दिल से अपनी खाली बैलगाड़ी को लेकर वापस गांव की ओर लौटता है और पाठक भी यहां उससे विदा लेते हैं। पाठकों केे दिल में आज भी हीरामन के लिए ढेर सारा प्यार है और उसकी तीसरी कसम का दर्द भी।
(चित्र गूगल से साभार) 






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