04 October 2013

शिक्षा और बालविवाह की जंग

ये दोनों ही शानदार लड़कियां हैं। लिंकिन सुबुद्धि और वो छात्रा जो अब भी पढ़ना चाहती है।

नोएडा में आठवीं में पढ़नेवाली लिंकिन की छात्रा पर उसकी मां लगातार शादी के लिए दबाव बना रही थी। पिता दबाव नहीं बना रहे थे लेकिन मौन जरूर थे। हालांकि पिता ने ही बच्ची का स्कूल में दाखिला करवाया था। दो साल तक छात्रा परिवार में शादी न करने के लिए संघर्ष करती रही। उसकी मां-जब तब उसे मारती-पीटती, गालीगलौज करती। स्थिति बर्दाश्त से बाहर थी। जिस लड़के से उसकी मां शादी कराना चाहती थी वो उसकी मौसी का बेटा था। लड़के ने लड़की के साथ कई बार दुर्व्यहवार किया, लड़की के मुताबिक बलात्कार तक करने की कोशिश की।
लिंकिन की उम्र कोई 28-29 साल होगी। वो एक संस्था से जुड़ी हैं, उसी के तहत झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाती हैं। यहीं उन्हें अपनी छात्रा पर गुजर रही इस स्थिति का पता चला। छात्रा बहुत होनहार है। उसमें पढ़ने का जज़्बा है। पढ़ाई जारी रखने के लिए वो परिवार की कितनी लानतें सह रही थी, मगर स्कूल नहीं छोड़ना चाहती थी। छात्रा पर शादी का दबाव बढ़ता जा रहा था। इस बालविवाह के खिलाफ़ लिंकिन अपनी छात्रा के साथ खड़ी हुईं। लड़की के मां-बाप को कई बार समझाया।
उस रोज़ भी जब छात्रा स्कूल नहीं आयी, लिंकिन को पता चला कि शादी कराने के लिए उसपर बहुत दबाव बनाया जा रहा है, वो छात्रा के घर पहुंची। उसकी मां से बात करने की कोशिश की। लेकिन छात्रा की मां ने उस लड़के के साथ मिलकर, जिससे वो अपनी बेटी की शादी करना चाहती थी, लिंकिन पर हमला बोल दिया। उनके सर पर बर्बरता से कई वार किए। लिंकिन ख़ून से लथपथ वहीं गिर गई। सर पर गंभीर चोटें आईं थीं। जिस झुग्गी में छात्रा का परिवार रहता था वहां के लोगों को भी यक़ीन नहीं हुआ। हमला करने के बाद लड़का फ़रार हो गया है जबकि झुग्गीवालों ने उसकी मां को पकड़कर पुलिस को सौंप दिया।
और लिंकिन अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही थी। लिंकिन के तमाम साथी इकट्ठा हो गए।
हर कोई उसके ठीक होने की प्रार्थना कर रहा था।  क्योंकि चोटें सिर में लगी थीं इसलिए डर ज्यादा था। लेकिन लिंकिन एक हिम्मतवर जुझारू महिला हैं।अस्पताल में भी उन्होंने ये हिम्मत दिखायी और एक हफ्ते में उनकी तबियत में सुधार आया।
लिंकिन इसलिए उदाहरण हैं क्योंकि उन्होंने बालविवाह के खिलाफ़ संघर्ष किया। अपनी आवाज़ बुलंद की। हममें से बहुत से लोगों के सामने कई बार ऐसे हालात आते हैं, हम सड़क पर किसी को पिटता देखते हैं, कुछ कर नहीं पाते। हम अन्याय होता देखते हैं, जुल्म होते देखते हैं लेकिन उसके खिलाफ़ खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। लिंकिन ने ये हिम्मत जुटायी। अस्पताल से लिंकिन के माता-पिता उन्हें वापस भुवनेश्वर ले गए। उड़ीसा सरकार ने भी लिंकिन की हौसला-अफज़ाई की। लिंकिन को बहादुरी पुरस्कार देने का फैसला लिया।
निश्चय ही लिंकिन का ये संघर्ष जारी रहेगा।
चिंता उस छात्रा की भी है, जो इस समय बाल सुरक्षा गृह में है। उसकी मां अब जेल में है और पिता ने साथ ले जाने से इंकार कर दिया है। बाल सुरक्षा गृहों की स्थितियां बहुत अच्छी नहीं होती, ये हम सब जानते हैं। पढ़ाई के लिए उस छात्रा ने इतना जोखिम मोल लिया। जिसकी होशियारी की तारीफ उसकी शिक्षिकाएं कर रही थीं। उसका पढ़ना इस सब में सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है।

(चित्र गूगल से साभार)

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (05-10-2013) को "माता का आशीष" (चर्चा मंच-1389) पर भी होगी!
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Asha Joglekar said...

कैसे जारी रहेगी उसकी पढाई । क्या वह बाल सुधार गृह से स्कूल जा सकेगी। आपने एक ज्वलंत समश्या उठाई है पर हमारी सरकार को वोटों की राजनीति करने से फुरसत कहाँ।