20 February 2013

ये पागल कौन है


ध्यान लगाने के लिए ओशो कहते  हैं  कि दिमाग को खाली कर दो, कुछ मत सोचो,  कोई विचार मत लाओ, शांत हो जाओ, तब सच तुम्हारे सामने होगा, सच से तुम्हारा साक्षात्कार होगा,  तुम्हारे सारे अनसुलझे सवालों के जवाब मिल जाएंगे।

मगर उसकी आंखें ही रिक्त हैं। वो शांत एकटक भाव से सब देखता है और कुछ सोचता नहीं। उसका चेहरा तो यही बताता है। सड़क पर दौड़ती-भागती गाड़ियां, शोर, कई बार तो किसी गाड़ी से टक्कर लग जाने की आशंका भी  होती है। मगर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो कुछ नहीं सुनता, देखता है और खूब देखता है। उसके चेहरे का सन्नाटा भीषण शांति सरीखा लगता है।

सुबह दफ्तर के बाहर चाय के ठेले पर दिखता है कभी-कभार। ठेले के सामने आकर खड़ा हो जाता है। चुप वो हमेशा ही रहता है। चायवाला उसके लिए एक चाय निकालकर किनारे रख देता है। वो समझ जाता है ये उसकी चाय का प्याला है (वहां चाय का इंतज़ार कर रहे और लोग भी होते हैं)। प्याला उठाता है और लौट जाता है, कहीं पर।


एक साथी ने बताया, फरवरी के ठंडे महीने में एक रोज बारिश में भीगने से बचने के लिए वो और उसका एक साथी भागकर  बस स्टैंड के नीचे  आ खड़े हुए।  वो बस स्टैंड के बाहर बारिश में खडा चुपचाप भीग रहा था। जैसे बारिश में ध्यान लगा रहा हो।


पता चला, बस स्टैंड के आसपास ही रहता है वो। सालों से नहीं बनाए गए, जट बने बाल, उलझी दाढ़ी, शून्य में ताकती नज़रें। फटे-पुराने-चीथड़े से कपड़े। सर्दियों में  फटी  हुई शर्ट सामने से आती ठंडी हवा को आराम से अंदर जाने की इजाज़त देती है। उसके उपर चीथड़ हो चुका एक जैकेट भी डला होता है।
एक जेब में ढेर सारी पन्नियां ठूंसे हुए दूसरे में कांच की खाली बोतल दबाए हुए। गर्मियों में भी जैकेट बहुत दिनों बाद उतरी उसकी। अब बारिश में भी यूं रहता है जैसे उसके लिए गर्मी, जाड़ा, बरसात सब एक समान हो।


पागल। ऐसे कितने पागल रहते हैं हमारे ईर्द-गिर्द। सड़कों पर दिख जाया करते हैं। जिन चीजों को हम कबाड़ में फेंक देते हैं उनके साथ वो जीते हैं। क्यों जीते हैं।  कैसा महसूस करते हैं?

उस सुबह वो आया तो एक बोला, मजनूं आ गया। मजनूं तो लैला के लिए पिटा था फिर मजनूं कहलाया जाने लगा।  ध्यान लगाने के लिए दिमाग में जिस रिक्तता को लाने की बात ओशो करते हैं, इस पागल के दिमाग़ में वो रिक्तता मौजूद है।  वो शांत और एक समान भाव से सबकुछ देखता है, सड़क पर चलते आदमी को भी, कुत्तों को भी, बसों को भी। वो पागल न होता तो ध्यान के परम क्षणों में होता।




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