28 June 2010

तो क्या ख्याल है


एक ख्याल आया अभी-अभी। नौकरी की उकताहट, मन में क्रिएटिविटी के उडते बुलबलों के बीच।
ख्याल की शुरुआत यहां से हुई कि मैं जहां रहती हूं पास में ही एक शॉपिंग कॉम्पलेक्स सरीखा है। बीच में फव्वारों के लिए बनी लंबी हौदी सी। दोनों तरफ खाने-पीने के लिये लगी रेस्तरां वालों की मेज़ें, उनसे आगे दुकानों का लंबा घेरा। गिफ्ट्स, गेम्स की एक शॉप है। उसकी मालकिन एक हल्की मोटी सी(अपने आगे सब हलके मोटे ही लगते हैं), ख़ुशमिज़ाज औरत है। उसकी एक कर्मचारी लड़की भी है। तिब्बत की है शायद। अच्छी फिगरवाली,घुटने तक की जींस पहनती है, स्मार्ट सी। उसे देख सोचती हूं पैसों की कितनी जरूरत होगी जो वो यहां काम करती है। उसकी दुकान मुझे पसंद है। वहां से मैं विंड चाइम, वॉल क्लॉक, शीशे के अंदर डांस करनेवाले जोड़े, पत्तियों की दो लताएं और काठ के घर में चीं-चीं करनेवाली चिड़िया, जैसी कई चीजें ले चुकी हूं।

तो ख्याल ये आया कि अगर मुझे वहां एक दुकान खोलने का विकल्प मिल जाता तो मैं किस चीज की दुकान खोलती (हालांकि मैं अच्छी तरह से जानती हूं ये काम मेरे बस का नहीं)।
और फिर जैसे कुल्हड़ में चाय पीते हैं, कुल्हड़ में लिक्विड चॉकलेट सरीखा कुछ ज़ेहन में उभर आया। मैंने सोचा चॉकलेट और बुक कैफे। लेकिन चाय और गर्मागरम कॉफी को छोड़ने का सवाल ही नहीं उठता।
तो तय पाया गया... चाय,चॉकलेट,कॉफी और बुक कैफे। मन में ख़ुश्बू भी उठने लगी। चॉकलेट,चाय,काफी की सुगंध तो मुझे बहुत प्रिय है। नाक से ज़ोर की लंबी सांस खींचों और सुगंध को अंदर तक डुबो लो। आ..हा। सबकुछ कुल्हड़ में मिलेगा। कुल्हड़ भी थोड़े स्टाइलिश होंगे। वाह, मुंगेरीलाल के हसीन सपने।

16 June 2010



इससे अच्छी तो बेइज्जती ठहरी।
16 साल का लड़का अपनी बहन के प्रेमी का कत्ल कर देता है। हम इसे ऑनर किलिंग कहते हैं। पिता, बेटी और उसके प्रेमी की हत्या कर देता है, ऑनर किलिंग है। ऑनर किलिंग को समझने में बहुत दिक्कत आ रही है। इस टर्म का इस्तेमाल इतना बढ़ गया है। न्यूज चैनल्स और अखबार दोनों इसका इतना इस्तेमाल कर रहे हैं।

ऐसी कैसी इज्जत है जो बेटी के किसी से प्यार करने पर खतरे में आ जाती है। बड़ी कमज़ोर है ये इज्जत, लानत भेजो इस पर। बेटी अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है और पिता भाई की इज्जत खतरे में आ जाती है। वाह। और फिर जिस इज्जत के नाम पर ऐसे कत्ल किये जा रहे हैं, उस इज्जत को कमाने के लिये इन पिता-भाइयों ने कौन से तीर मारे।
मतलब सोलह-सत्रह-अठारह साल के लड़के हत्या करते हैं और इसे ऑनर किलिंग का टर्म देकर ऐसा लगता है जैसे कि इन्हें महान बनाया जा रहा है। अरे उस लड़के-लड़की का प्यार समाज में कहां से अशांति पैदा कर रहा है। जिसे हम ऑनर किलिंग का नाम देकर कहीं किसी कोने में ऐसे कत्ल को सही भी ठहरा रहे हैं।

और फिर इतना ही ख्याल है ऑनर का तो खुद मर जाओ। न, ये नहीं करेंगे, अपनी ज़िंदगी बड़ी प्यारी है।
मैं अपनी तरफ से ऑनर किलिंग शब्द को पूरी तरह ख़ारिज करती हूं। ऑनर किलिंग कहकर हम ऐसी वारदातों को कहीं और बढ़ावा तो नहीं दे रहे?