यहां गूंजते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर,
बे-परदा, बे-शरम,जो बनाती है अपनी राह, कंकड़-पत्थर जोड़ जोड़,जो टूटती है
तो फिर खुद को समेटती है, जो दिन में भी सपने देखती हैं और रातों को भी बेधड़क सड़कों पर निकल घूमना चाहती हैं, अपना अधिकार मांगती हैं। जो पुकारती है, सब लड़कियों को, कि दोस्तों जियो अपनी तरह, जियो ज़िंदगी की तरह
14 March 2009
हाईवे ऑन माई व्हील्स कर के एक पोस्ट डाली थी। टिप्पणियों ने विश्वास डिगाने की पूरी कोशिश की। इस बार फोटुआ डाल रही हूं, अपनी भी, हाईईईईवे के साथियों की भी।
13 comments:
सोतुडू जी तो दिख नहीं रहे!
Nice Pics...
meet
ये हाई वे है?...लेकिन कहाँ का? साथी सुन्दर हैं...
नीरज
और फोटो कहाँ हैं?
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
दिल्ली-देहरादून मार्ग है...शायद नेशनल हाईवे 58 पड़ता है और सोतड़ू जी फोटू खींच रहे हैं भाई।
बहुत बढिया जी. अब तो यकीन हो गया है.
रामराम.
बढ़िया है । फोटो और भी होने चाहिये थे ।
हूँ! ठीक है.
अरे हाईवे पर कार रोक कर फ़ोटू ? ओर फ़िर हाईवे पर साईकिल ? मेरे लिये बहुत हेरानगी की बात है, लेकिन फ़ोटो बहुत सुंदर लगा
धन्यवाद
बोब्बो, या लाल कत्तर क्यूं बांध्धी सिर पे? अब अगली पोस्ट में संस्मरण भी लिखेंगी क्या आप?
वर्षा दोस्त मैं तो भावुक हो गया हूं फोटो दोबारा देखकर। ये बदहाल हाइवे यानी अपने शहर की डगर...
तो आपकी जिद पर सोतडू जी ने कार को किनारे खडा करके, अपनी सीट पर आपको बिठाकर, एक फोटुआ खींच ही डाला. बहुत धन्यवाद उनका - इसको कहते हैं दिल रखना.
आपका चेहरा लड़कों जैसा है, हाँ लिखने का स्टाइल एक आम महिला की भावुकता और कल्पना लिए हुए है.
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