(एक मज़ेदार आर्टिकल हिंदुस्तान में पढ़ने को मिला। जो वहां न पढ़ सकें, यहां पढ़ सकते हैं। एड़वर्थ ए मर्फी जूनियर की थ्योरी पर ये आर्टिकल है। थ्योरी है any thing can go wrong, will go wrong)
जूते में अगर कोई बाहरी पदार्थ आ घुसा हो तो निश्चित जानिए वह उसी कोण पर अटक जाएगा जहां से वो आपको सबसे अधिक तकलीफ दे। मक्खन लगा टोस्ट ज़मीन पर हमेशा उसी ओर गिरेगा, जिधर मक्खन लगा है। ये चंद वो सिद्धांत हैं, जिहें स्वीकार कर आप मक्खन बचाने के लिए ज्यादा एहतियात बरत सकते हैं और अपनी गड़बड़ियों पर हंस भी सकते हैं। इन सिद्धांतों के माता और पिता दोनों एडवर्ड ए मर्फी जूनियर हैं।
इन सिद्धांतों का जन्म ही एक गड़बड़ी से हुआ। 1949 में इंजीनियर मर्फी पर अमेरिकी एयरफोर्स ने तेज़ स्पीड के बीच मानव शरीर की सहनशक्ति की सीमा तय करने के कुछ वैज्ञानिक प्रयोग किए थे। प्रयोग के दौरान 16 सेंसर मर्फी के शरीर पर लगाए जाने थे। मर्फी के सहायक ने वो सारे सेंसर उल्टे लगा दिए। नतीजा आया शून्य. इस गड़बड़ी पर मर्फी के मुंह से जो बोल फूटे वो मर्फी सिद्धांत की अमर बुनियाद बने- अगर कोई चीज उलट-पुलट हो सकती है, तो वो यकीनन उलट पुलट होकर ही रहेगी। any thing can go wrong, will go wrong.
आज ये हाज़िर जवाब लोगों के प्रिय मुहावरों में से एक है। ये सिद्धांत अब साठ बरस का हो गया है। इसी सिद्धांत को दिमाग़ में रखते हुए आज आम आदमी के इस्तेमाल के लिए बेहतर तकनीक से बनाई गई चीज में गड़बड़ी पैदा करनेवाले कनेक्शनों को ज्यादा मुश्किल बना दिया जाता है।
उदाहरण के लिए कभी कम्प्यूटरों में 3.5 इंच की फ्लॉपी का इस्तेमाल होता था। आपने गौर नहीं किया होगा लेकिन फ्लॉपी तबतक अंदर नहीं जाती जब तक आप उसे सही तरीके से डिस्क में न डालें। इस 3.5 इंच वाली फ्लॉपी से पहले 5.25 इंच की फ्लॉपी चलती थी, लेकिन क्वालिटी के मानकों पर ये उतनी खरी नहीं उतरती थी। क्योंकि ये फ्लॉपी उलट-पुलट करके भी डिस्क में घुस जाती थी और इससे कम्प्यूटर को नुकसान पहुंचने का खतरा था।
डिफेंसिव डिजायनर(चीजों को गलती की गुंजाइश से बचानेवाला) जानता है कि अगर फ्लॉपी को उल्टा करके डालना संभव है तो कोई न कोई महानुभव उसे उल्टा करके जरूर डालेगा।
इसीलिए तो कहा जाता है कि -आप अगर कुछ ऐसा बनाएंगे जो बेवकूफी से सुरक्षित होगा तो ऐसा व्यक्ति पैदा हो जाएगा जो और बड़ा बेवकूफ होग।-
लोग दरअसल बेवकूफों की बेवकूफी की हद का आंकलन नहीं कर पाते।
18 comments:
मैनें भी पढ़ा था और वाकई गौर करने लायक है...
अरे वाह क्या बात कही कभी सोचा भी नही, वेसे जब पता हो कि अमुक आदमी थोडा ज्यादा सयाना है तो उसे कोई काम सोपना भी तो एक बडी वेबकुफ़ी होगी ना.
धन्यवाद
मजा आ गया. हमारे एक मित्र हैं जो कॉल आने पर अपने मोबाइल का एंड बटन दबा देते हैं. फ़िर शिकायत करते हैं की जबरन मिस कॉल कर रहा था.
वर्षा जी
अच्छा लगा , चलो हमने मर्फी के बहाने ही सही बेवकूफी की हद को बेहद पास से देख लिया.
- विजय
waah kya baat hai ... bahut sahi baatein bataayi aapne...maza aa gaya padh kar....
मर्फी की 'बर्फी' सदा मिठास छोड़ जाती है।
मज़ेदार !
सुंदर
jankaari ke liye bahut shukriya....
acha laga lekh padhkar...
आईला !इत्ते सच बोलेंगी ....तो मुश्किल में पड़ेगी जी.......आखिरी लाइन तो ख़ास तौर से कमाल की है.
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
आपकी कविताएं पढ़ी . समर्थ लेखिका हैं आप .समय हो तो मुंबई हमले से उद्वेलित होकर लिखे मेरे गीत पर भी अपनी बेबाक राय दे तो उपकार होगा
आर्टिकल तो रोचक है ही, बात भी सही है।
आर्टिकल तो रोचक है ही, बात भी सही है।
मर्फी नियम की ६०वीं वर्षगांठ पर मैं भी कुछ लिखने वाला था। इसके पहले रवी जी ने भी कुछ लिखा था। मैंने उनसे लिंक भी मंगवाये थे पर जब आपने लिख दिया तो लिखने की जरूरत नहीं।
यह नियम सॉड नियम के रूप से हमेशा से जाना जाता था पर इसे लोकप्रयता मर्फी नियम के रूप में १९४९ से मिली। इसके बारे में आप इसकी वेबसाइट पर यहां पढ़ सकती हैं। इसके इतिहास और सॉड नियम के बारे में इसी वेबसाइट के शीर्षक Murphy's laws origin पर चटका लगायें।
आप चाहें तो रवी जी के लेख और मर्फी नियम की वेबसाइट का पता अपनी इसी चिट्ठी के मूल लेख पर डाल लें।
chaliye apke bahane hindustan me chhapa artical padne ko to mila
बेशक! अपने साथ तो यह इतना सच है की कभी-कभी शक होता है कि मैं मर्फी का पुनर्जन्म हूँ.
दुबारा पढकर भी अच्छा लगा। शुक्रिया।
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