10 March 2008

मेरे कुछ पसंदीदा वाक्य, जो कविता का आकार न ले सके
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और फिर गिर पड़ा
घुमड़ता बादल
मेरी गोद में आकर
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एक समंदर मेरे कमरे में था
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उलझी झाड़ियों में सुलझा फूल
चटक लाल
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तन्हा,
ज़िंदगी ख़्वाबों में
ख़्वाब रातों में...

1 comment:

Ek ziddi dhun said...

adhoore prem ki tarh hi sundar aur maneekhej hote hain aise adhoore vakya