दो बातें ध्यान आ रही थीं, लिखने का दिल चाहा।
एक तो गूगल-फेसबुक को लेकर हमारी सरकार का डर और इसे प्रतिबंधित या नियंत्रित करने का विचार (जो शायद संभव नहीं)। कितनी ख़ौफ़जदा है हमारी सरकार। यहां मनमोहन की कविता याद आई।
तो पहली बात थी, मनमोहन की ये कविता...
फूल के खिलने का डर है
सो पहले फूल का खिलना बरखास्त
फिर फूल बरखास्त
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हवा के चलने का डर है
सो हवा का चलना बरखास्त
फिर हवा बरखास्त
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डर है पानी के बहने का
सीधी-सी बात
पानी का बहना बरखास्त
न काबू आए तो पानी बरखास्त
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सवाल उठने का सवाल ही नही
सवाल का उठना बरखास्त
सवाल उठाने वाला बरखास्त
यानी सवाल बरखास्त
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असहमति कोई है तो असहमति बरखास्त
असहमत बरखास्त
और फिर सभा बरखास्त
जनता का डर
तो पूरी जनता बरखास्त
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किले में बंद हथियारबंद खौफ़जदा
बौना तानाशाह चिल्लाता है
बरखास्त बरखास्त
रातों को जगता है चिल्लाता है
खुशबू को गिरफ़्तार करो
उड़ते पंछी को गोली मारो ।
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दूसरी बात
अभी कुछ देर पहले एक ख़बर लिख रही थी। ख़बर थी कानपुर के एक रिक्शेवाले की, जो बीस बरस पहले कराची से कानपुर घूमने आया था, यहां मल्लिका बेगम नाम की लड़की से प्यार करने लगा, दोनों ने शादी कर ली, तीन बच्चे पैदा हुए। अरशदउल्लाह नाम था उस शख्स का। इस सबमें उसका वीज़ा एक्सपायर हो गया, तो ग़ैर कानूनी तरीके से एक पाकिस्तानी हिंदुस्तान में रह रहा है। उसकी बीवी एक बार पाकिस्तान गई भी, पर वहां के हालात को देख इन्होंने हिंदुस्तान में ही रहने का फैसला किया। रिक्शा चलाता है अरशदउल्लाह। एसओजी उसे पकड़कर ले गई। दस महीने बाद ज़मानत मिली। नियमानुसार अरशदउल्लाह को हिंदुस्तान में रहने की इजाज़त मिल सकती है, क्योंकि उसने एक हिंदुस्तानी महिला से शादी की और यहां रहते हुए उसे 7 साल से ज्यादा वक़्त गुज़र चुका है। इस ख़बर को लिखते-लिखते एक वाक्य लिखा मैंने....
"जेल की चारदीवारी के इधर और उधर सड़क की दूरी कानून के लिहाज़ से कई बार सालों लंबी हो जाती है। अरशदउल्लाह को ये दूरी तय करने में दस महीने लंबा वक़्त लगा।"