25 March 2008

बचाओ...बाघ...

बचाओ...बाघ...
क्या आपको अपने बचपन में सुनी कहानियां याद हैं, जिसमें एक जंगल होता था, एक बाघ होता था जो जंगल का राजा माना जाता था। कहानी में जिसका ज़िक्र आते ही बच्चों के रोंगटे खड़े हो जाते थे, बाघ क्या करने वाला है। जंगल का शहंशाह, सबसे खतरनाक शिकारी जिसकी कल्पना भी डराती है, जिसके आने की आहट से दूसरे जानवर कांप जाते थे, जंगल भी शायद सहम जाता हो। बाघ की कुछ ऐसी ही तस्वीर हमारे दिलो-दिमाग में गढ़ी गई है। बाघ की कहानियां बचपन में बहुत लुभाती थीं और अब डर है कि बाघ कहीं कहानी बनकर ही न रह जाए। जंगल से बाघों की घटती संख्या तो यही संकेत दे रही है।

टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की रिपोर्ट कहती है अब हमारे देश के जंगल में महज 1411 बाघ रह गए हैं(इस गणना में उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के कुछ नक्सल प्रभावित इलाके शामिल नहीं थे)। पिछली गणना(2001) की तुलना में लगभग आधे। जिम कार्बेट को छोड़ दें तो सरिस्का और दूसरे टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या में गिरावट ही आयी है। प्रोजेक्ट टाइगर हर जगह नाकाम रहा है। बाघ के खात्मे की जो वजहे हैं, उनमें शिकार-क्योंकि बाघ बहुत कीमती होता है, घटते जंगल, आपसी द्वंद-क्योंकि घटते जंगल की वजह से बाघ का साम्राज्य भी घटता जा रहा है और बाघ के ईर्द-गिर्द रहनेवाले लोग-जिन्हें बाघ से खतरा होता है। एक विशेषज्ञ की राय थी कि बाघ को बचाने के लिए बाघ के ईर्द-गिर्द बसी बस्तियों के लोगों को उसका दोस्त बनाना होगा। धरती पर हर प्राणि की अपनी जगह है, तभी प्रकृति में संतुलन कायम है, प्रकृति को चींटी की भी जरूरत है, बाघ की भी, इनमें से एक भी नहीं रहा तो संतुलन बिगड़ जाएगा और क्या हम अपने जंगल बुक से बाघ का पन्ना खाली करने के लिए तैयार हैं?

2 comments:

editor said...

Thanks a lot, Varsha Ji, for visiting the blog. Arrey kaun se akhbar mein padha....blog ke baare mein?

... said...

इतना सब बचाओ
क्या है
जैसे बाघ
जैसे घड़ियाल
काफी कुछ ऐसा ही
जो दिख रहे हैं यहां
शायद जो जीवन से हैं बेफ़्रिक
उनको मनुष्य के ख़त्म होने की
नहीं रहती चिंता
जैसा मैं देख पा रहा हूं
समझ आता है यह देखकर...